संदेश
बन ठन निकल चला मैं - नवगीत - पंकज देवांगन
बन ठन निकल चला मैं आरज़ू को ले चला मैं दोपहरी की धूप में थका हारा गिर पड़ा मैं बन ठन निकल चला मैं ख़ुशियाँ की दो घड़ी है फिर यह किसको क्या…
मन का नाप - नवगीत - सुशील शर्मा
तुमको अपना मन समझा था पर तुम भी तो निकले आस्तीन के साँप विषधर चारों ओर घूमते रहे फुसकते और भभकते कभी नहीं डर लगता था साथ तुम्हारा पाकर…
जाड़े के दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हैं जाड़े के दिन औ' ख़ूब प्यारी लग रही धूप। हैं तृप्त लगते तालाब, कुँए, झील। काला-काला कौआ लगता वकील॥ बेचती चूड़ी-बिंदी मनिहारी– लग…
माँ - नवगीत - सुशील शर्मा
तेज़ धूप में बरगद जैसी छाया माँ। झुर्री वाली प्यारी प्यारी काया माँ। मेरे मानस की लहरी में, सदा सुहागन मेरी माँ। मेरी जीवन शैली में, सु…
मुस्कान से भरी - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
खेत में फ़सल है मुस्कान से भरी। ख़्यालों के क़ाफ़िले हैं रुके हुए। बरगद के कंधे लगता झुके हुए॥ फ़सलों की साड़ी लगती हरी-हरी। नन्हे-नन्हे हा…
ख़ुद से मुलाक़ात - नवगीत - सुशील शर्मा
ख़ुद से मुलाक़ात चलो करें आज। अकेले-अकेले बहुत दिन बीते। रिश्तों के बस्ते कुछ भरे रीते। चलो आज गाएँ वासंती साज। गाँवों के पनघट सब लगें स…
हम हैं डरे-डरे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
फफक-फफक कर आँखें रोईं आँसू नहीं झरे। तुषार छाया शहर-शहर है। जाड़ा ढाता रहा क़हर है॥ मौसम के जैसे देखो तो लगते घाव हरे। आपसदारी लोग भूलत…
कोरस में गातीं - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बहुत दिनों से नहीं आ रही पुरवा की पाती। धूप-दरीचे हिले-मिले हैं। मिटते शिकवे और गिले हैं॥ मन मेरा बंगाली है तो तन है गुजराती। छानी में…
छाया त्रासन है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
नहीं फटकता अँधकार पहरुए हैं उजाले के। अँधकार का नाश करेंगे दिए दिवाली के। हथकड़ियाँ हाँथों में होंगी किसी मवाली के।। हैं कभी-कभी फ़साद …
ज़रा सा क़यास लगा - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
देवशयनी एकादशी है चातुर्मास लगा। मंगल कार्य नहीं हो सकते। पर्यंक पे नहीं सो सकते॥ बेगैरत उनने माना हमको ख़ास लगा। अधिकारी की बल्ले-बल्ल…
मानसून का इंतज़ार है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
भीषण गर्मी उमस बढ़ी है मानसून का इंतज़ार है। छाया-धूप है सखी-सहेली। पानी और है गुड़ की भेली॥ भेड़ाघाट नर्मदा तट पर और वहीं पे धुँआधार ह…
मौसम का स्वभाव - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दिन भी अपनी रातें जैसे करता है रंगीन। आँधी ने है बहुत पेड़ों का ख़ून किया। हमने धीरे-धीरे खिलता प्रसून किया॥ भँवरों के हाँथों बाग़ों में…
बचके रहिए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हादसों का शहर है ये बचके रहिए। कामना है आसमानी हो गई। और फूलों की जवानी हो गई॥ जीवन में है नदी की धार सा बहिए। इंसानियत सूख के काँटा ह…
तन्हाई ने घेरा है - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
कितने रौशनदान खुले हैं, फिर भी तम का डेरा है। बिरवा सूखता है रिश्तों का। अटूट सिलसिला है किस्तों का॥ पल भर को भी नींद न आए, कैसा रैन …
चिराग़ लगे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
दूर करने अंधकार को जैसे चिराग़ लगे। सच का दामन और झूठ के सौ-सौ दाग़ लगे॥ शहर चतुर हैं गाँव अभागे हैं। फटी धोतियांँ सिलते तागे हैं॥ कोई प…
बादल मगन हो गए - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बरसता पानी ख़ूब, बादल मगन हो गए। हैं कर रहीं लहरें उत्पात। पावस की हुई बहुत बिसात॥ उजड़ जाए है ऊब, बादल मगन हो गए। धरा हो गई पानी-पानी।…
देह अगोचर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
हरियाली की देह अगोचर पात लगे झरने। पड़ता लू का पेड़, पत्ते, फूल पर साया। आग हुई सूर्य किरण बहुत क़हर बरपाया।। नदिया, झरने, ताल लगे हैं…
प्यास वाले दिन - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
लगे सताने झोपड़ियों को भूख औ प्यास वाले दिन। धूप है दिवस को कचोटने लगी। जब-तब लू हवा को टोंकने लगी।। जीवन में जबकि देखे हैं कड़वे अहसा…
उम्मीद पर करने लगी संवेदना हस्ताक्षर - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
उम्मीद पर करने लगी संवेदना हस्ताक्षर। हैं ख़्वाब आँखों के पखेरू हो गए। विश्वास के पर्वत सुमेरू हो गए।। आशा अँगूठा छाप थी अब हो गई है सा…
जाड़े का मौसम - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
सबको बहुत लुभाता है जाड़े का मौसम। महल, झोपड़ी, गाँव शहर हो। या फिर दिन के आठ पहर हो।। कभी कभी तो लगता है भाड़े का मौसम। कंबल, स्वेटर …
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