हम हैं डरे-डरे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार

हम हैं डरे-डरे - नवगीत - अविनाश ब्यौहार | Navgeet - Hum Hain Dare Dare - Avinash Beohar
फफक-फफक कर
आँखें रोईं
आँसू नहीं झरे।

तुषार छाया
शहर-शहर है।
जाड़ा ढाता
रहा क़हर है॥

मौसम के जैसे
देखो तो
लगते घाव हरे।

आपसदारी
लोग भूलते।
डाल पे खग
सदैव झूलते॥

आँगन की गौरैया
से तक
हम हैं डरे-डरे।

होता जातिवाद
ज़हरीला।
और चेहरा
भय से पीला॥

कोई यदि भटनागर
है तो
हम भी हुए खरे।


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