दूर करने
अंधकार को
जैसे चिराग़ लगे।
सच का दामन
और झूठ के
सौ-सौ दाग़ लगे॥
शहर चतुर हैं
गाँव अभागे हैं।
फटी धोतियांँ
सिलते तागे हैं॥
कोई पहेली
हल करने
कितना दिमाग़ लगे।
दुर्घटना से
लगे बचाने हैं।
कोलाहल में
उगते थाने हैं॥
डिटर्जेन्ट को
घोला और
झाग ही झाग लगे।
दिन डूबा तो
शाम आ गई है।
उपदा दफ़्तर
बेच खा गई है॥
मधुऋतु में
मनभावन सा
टेसू का बाग़ लगे।
अविनाश ब्यौहार - जबलपुर (मध्य प्रदेश)