कोरस में गातीं - नवगीत - अविनाश ब्यौहार
बुधवार, नवंबर 22, 2023
बहुत दिनों से
नहीं आ रही
पुरवा की पाती।
धूप-दरीचे
हिले-मिले हैं।
मिटते शिकवे
और गिले हैं॥
मन मेरा
बंगाली है तो
तन है गुजराती।
छानी में है
कागा बोले।
आस-पास
मंगल क्षण डोले॥
वन में
सुंदर-सुंदर चिड़ियाँ
कोरस में गातीं।
ठकुर सुहाती
होने लगती।
मावस तम को
बोने लगती॥
जैसे कोई
मांँ बच्चे को
अक्सर बहलाती।
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