संदेश
किसान आरती - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
तेरी जय हो अन्न के दाता । तु सबकी भूख मिटाता ।। दिन-रात तु पसीना बहावै , सबकी खातर अन्न उगावै , और खुद भूखा सो जाता । तेरी जय हो…
काट लाये खेतों से सपनों को हम - कविता - सतीश श्रीवास्तव
जीवन बीत रहा उलझा सा उलझन हुई न कम, काट लाये खेतों से सपनों को हम। यही खेत तो जीवन रेखा खेतों में ही जीना, नहीं किसी को पता खेत में कि…
ग़रीब किसान - कविता - गणपत लाल उदय
हम गाँवो के ग़रीब किसान करते - रहते खेतों पर काम। फिर भी मिलता न पूरा दाम लगे रहते हम सुबह से शाम।। पत्नी बच्चे और ये घर वाले काम स…
किसान की ललकार - लेख - श्याम "राज"
तुम्हारी ज़िंदगी की डोर किसी और के हाथों में नहीं बल्कि मेरे ही हाथों में है। मैं कोई और नहीं भूमिपुत्र किसान हूँ जिसकी मेहनत पर तुम कद…
हे किसान - कविता - तेज देवांगन
गड़ गड़ की गड़गड़ाहट पे चम चम की चमचमाहट पे पसीने की तर तरहात पे दो टूक की आहत पे कर जाते हर काम हे कृषक तुम हो महान। अथ अथाह तेरी चल …
खेत की रोटी - कविता - विकाश बैनीवाल
होती है कठिन खेत की रोटी, सिर्फ किसानों से जुड़ी कसौटी। ना डकैती है, ना ही रिश्वतखोरी, ना ही चोरी, ना ही जमाखोरी। ना ही इसकी कमाई ह…
क्यों किसान भूखा है - कविता - शिवचरण चौहान
क्यों व्यापारी मौज कर रहा क्यों किसान भूखा है। दिल में रखकर हाथ कहो क्या खुद से खुद पूछा है।। बिना किए कुछ काम धाम अरबपति नेता क्यों ह…
हे किसान - कविता - अनिल भूषण मिश्र
हे अन्नदाता हे किसान हो जग में आप सबसे महान नहीं कोई भूषण आप समान।। सुबह दोपहर या शाम करते नहीं कभी आराम हर वक़्त हाथ लगा रहता कोई काम।…
किसान का दर्द - मुक्तक - संजय राजभर "समित"
यह स्वेद सिंचित अनाज के दाने हैं। क्षुधा तृप्ति का यही मान्य पैमाने हैं। किसान की पीड़ा भला कौन सुना है इस बात पर नेता बड़े सयाने…
भोर हुई वो घर से निकला - कविता - आर एस आघात
भोर हुई वो घर से निकला, जग सारा जब सोया था। तन उसके दो गज का गमछा, शिक़वे न किसी से करता था। सुबह से लेकर दो पहर तक, रहता वो खलियानों…
अन्नदाता की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा
किसी का वेतनमान बड़ा है, बड़ा किसी का भत्ता। किसी का पद ओहुदा बड़ा है, बड़ी किसी की सत्ता।। अन्नदाता का मान घटा है, अफसर सुने न नेता। …
खेतों के भगवान देश के किसान - कविता - हरिराम मीणा
धान उगाता पेट जो भरता मान नही किसान का। नेता दुश्मन बन बैठे है आज उसी की जान का ।। किसान चल रहा कांटो पर और नेता वायुयान से। खिलवाड़ ह…
कृषक व्यथा - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
धरती सेवक, अन्न प्रदाता भूखो के तू कष्ट मिटाता, बारिश, गर्मी, शीतलहर में तू अपना कर्तव्य निभाता।। सूखे में खुद भूखा मरता बाढ़ में तू …
मैं तो किसान का बेटा हूँ - कविता - बजरंगी लाल यादव
सुनों! सुनों! हे-दुनियाँ वालों, तुम कितनी भी तरक्की कर लो, पर किसान से छोटे हो, चाहे चाँद पर चले गए, चाहे वायुयान बनाया है, सब…
अन्न दाता भगवान - लोकगीत - समुन्दर सिंह पंवार
दिन रात मेहनत करकै अन्न उगावे बेअनुमान बार बार प्रणाम तनै मेरा अन्नदाता भगवान गर्मी सर्दी सहता है तू सहता भूख और प्यास एक दिन क…