हे किसान - कविता - अनिल भूषण मिश्र

हे अन्नदाता हे किसान
हो जग में आप सबसे महान
नहीं कोई भूषण आप समान।।
सुबह दोपहर या शाम
करते नहीं कभी आराम
हर वक़्त हाथ लगा रहता कोई काम।।
करके मेहनत पसीना खूब बहाते हो
सबके लिए जीवन अन्न उगाते हो
सच में धरती को तुम स्वर्ग बनाते हो।।
औरों के हित खुद मिट जाते हो
खुद रहकर भूखे नंगे सब को पोषित करते हो
आये लाख परेशानी नहीं किसी को दोषित करते हो।।
परेशानियों से बना तुम्हारा यूँ नाता है
मानो साथ तुम्हें उनका ही भाता है
मान लिया उनको ही अपने सिर का छाता है।।
जो आये दैवीय बाधा उसको भी सह जाते हो
ईश्वर से भी डटकर फरियाद नहीं लगाते हो
मान उसे अपना प्रारब्ध सबको गले लगाते हो।।

अनिल भूषण मिश्र - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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