अन्नदाता की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा

किसी का वेतनमान बड़ा है, बड़ा किसी का भत्ता।
किसी का पद ओहुदा बड़ा है, बड़ी किसी की सत्ता।।
अन्नदाता का मान घटा है, अफसर सुने न नेता।
बैठ स्वर्ग में रोए धरती, अब ध्यान धरो विधाता।।

कई गैंग हुआ कई रेप हुआ, कोई तले पकौड़ा काम हुआ।
कोई पास हुआ कोई फेल हुआ, रुपया डॉलर का खेल हुआ।।
जल जंगल की बात चली तो, पैदा नक्सलवाद हुआ।
बैठ स्वर्ग में रोए धरती, अब ध्यान धरो विधाता।।
अन्नदाता का मान घटा है, अफसर सुने न नेता।।।

किसी का अमन चैन बड़ा है, बड़ा किसी का कुनबा।
किसी की सोहरत शान बड़ी है, बड़ा किसी का जलवा।।
प्रकृति का कहर बरसा है, धरती रोवे मनवा।
बैठ स्वर्ग में रोवे धरती, अब ध्यान धरो विधाता।।
अन्नदाता का मान घटा है, अफसर सुने न नेता।।।

कोई माफी मांग के वीर बना, कोई सूट पहन के फकीर बना।
कोई देश छोड़कर अमीर बना, कोई योग बेच के धनवीर बना।।
खून पसीना सींच खेत में कृषक क्यों कंगाल बना।
बैठ स्वर्ग में रोए धरती अब ध्यान धरो विधाता।।
अन्नदाता का मान घटा है, अफसर सुने न नेता।।।

आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)

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