मैं तो किसान का बेटा हूँ - कविता - बजरंगी लाल यादव


सुनों! सुनों! हे-दुनियाँ वालों,
तुम कितनी भी तरक्की कर लो,
पर किसान से छोटे हो,
चाहे चाँद पर चले गए,
चाहे वायुयान बनाया है,
सब कुछ करने पर भी तूँ मेंरे आगे भूखा है,
हों डॉक्टर वैज्ञानिक या अभियन्ता सबही को पेट रुलाता है,
पर किसान ही ऐसा है जो सबकी भूख मिटाता है,
नेता हो या मंत्री संतरी सब मेंरी ही खाते हैं,
मेंरे ऊपर शासन करके मुझ पर ही रोब जमाते हैं,
पर सब जुल्मों को सहकर भी मैं सबका पालन करता हूँ,
गर्व मुझे बस इतना है,
             मैं तो किसान का बेटा हूँ|

टाटा बिड़ला हों अम्बानी सब मेंरी ही खाते हैं,
चाहे कितनी कौड़ी रख लें पर भोजन को शीश नवाते हैं,
सोने हीरे रखने वालों वह खाने की चीज नहीं, 
चाहे कितना गठिया लो पर भरने वाला पेट नहीं,
जब भी खाएगा कोई तो मेंरा उपजाया खाता है,
पर मेंरे हक की बातों को वह कहने में शर्माता है,
पर हे देश के भाई-बहनों मैं अपने खून पसीने का,
तुम पर सब अन्न लुटाता हूँ,
गर्व मुझे बस इतना है,
               मैं तो किसान का बेटा हूँ|

बजरंगी लाल यादव
दीदारगंज,आजमगढ़ (उ०प्र०)

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