संदेश
संस्कार - कहानी - रमेश चन्द्र यादव
फ़ोन की घंटी एक बार बजकर चुप हो गई थी, तभी दोबारा से फिर घंटी बजी। फ़ोन उठाते ही उधर से अनजान आवाज़ आई "पटवारी जी बोल रहे हैं?"…
यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए - कविता - उमेन्द्र निराला
देख बुराई अपने अंदर इसे मरना ही चाहिए, जीवन में फैला अँधेरा मिटना ही चाहिए, यह दीपक है इसे जलना ही चाहिए। लगी विचारों मे वर्षो की दीमक…
पथ सहज नहीं रणधीर - कविता - श्रवण सिंह अहिरवार
अपनी जीत पर अधिक उल्लास ना कर, मंज़िल अभी आगे है यह नज़र-अंदाज़ न कर, कर्तव्य पथ में बिखरे हैं शूल अनंत यह ध्यान धर, पथ सहज नहीं रणधीर ये…
बचपन के दिन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कितने सुंदर, बेमिसाल थे, छुटपन के दिन बचपन के दिन, रह ना पाते सखियों के बिन। रह ना पाते सखियों के बिन। खेलकूद थे मस्ती थी, काग़ज़ वाली क…
जो सहज सुलभ हो - कविता - मयंक द्विवेदी
जो सहज सुलभ हो अमृत तो तुच्छ अमृत का क्यूँ पान करूँ इससे अच्छा तो विष पीकर विष का ही गुणगान करूँ कूल सिंधु के बैठे-बैठे क्यों मौजों का…
सम्मान - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
सदाचार शिक्षण मिले, शिक्षा नैतिक ज्ञान। मानवीय मूल्यक सदा, मिले कीर्ति सम्मान॥ सबकी चाहत लोक में, मिले समादर मान। कर्मवीर सच सारथी, से…
ऋतुराज बसंत - कविता - गणेश भारद्वाज
पहन बसंती चोला देखो, अब शील धरा सकुचाई है। कू-कू करती कोयल रानी, लो सबके मन को भाई है। हरयाली है वन-उपवन में, कण-कण में सौरभ बिखरा है।…
क्षितिज के पार जाना है - गीत - उमेश यादव
उठो जागो बढ़ो आगे, क्षितिज के पार जाना है। सुनो नारियों, आगे बढ़कर, अपना मार्ग बनाना है॥ जकड़ी थी ज़ंजीरों से पर, तूने क़दम बढ़ाई थी। झाँसी…
मेरी कविताएँ - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
मेरी कविताएँ मेरा सहारा है मैंने जब जब उनको पुकारा है वह साथ देती है मेरा हर वक्त फैलाती दिल में उजियारा है मेरी कविताएँ मेरा सहारा है…
शिव का सार - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
गहन क्लेश में सुख का आगार योग से प्राप्य शिव का सार। बृहद क्षेत्र में व्यापक आकाश सर, कल्प दिए सरलता से संवत्सर। निरंजन अरूप यद्यपि सर…
शिव आपको प्रणाम है - गीत - सुशील शर्मा
सर्वविग्रहाय शिवाय तत्पुरुषाय अखण्डाय शिव आप अविराम हैं। हर्यश्वाय यज्ञाय महाकायाय हरये विष्णुप्रसादिताय शिव आपको प्रणाम है। महाप्रस…
शिव पार्वती मंगलगीत - गीत - हिमांशु चतुर्वेदी 'मृदुल'
शिव भोले भंडारी, शिव भोले भंडारी कैलाश के राजा, शिव भोले भंडारी नीलकंठ हे महादेव तुम भोले भंडारी जड़ चेतन के स्वामी तुम भोले भंडारी मह…
परीक्षा - कविता - महेन्द्र सिंह कटारिया
आने से जिसके चढ़े बुख़ार, जाने से ख़ुशी का बढ़े ख़ुमार। होती दुखदायी है, जीवन में परीक्षा। ज़िंदगी में होना अगर तो, मिले न प्रगति का ज्…
सब एक जैसी नहीं होती - कविता - संजय राजभर 'समित'
एक तरफ़ समर्पण था निष्कलंक, निष्छल असीम प्रेम था पर मेरे दिमाग़ में एक वहम थी एक बस छूटेगी तो दूसरी मिलेगी फिर कली-कली मॅंडराता हुआ बहु…
उपमान कहाँ से लाऊँ मैं - कविता - राघवेंद्र सिंह
विच्छिन्ति! सुनो ऐ कवि मन की, किस विधि से तुझे सजाऊँ मैं। इस सकल सृष्टि में नव-निर्मित, उपमान कहाँ से लाऊँ मैं। है चंद्र पूर्णिमा का…
ऋतुराज - कविता - राजेश 'राज'
दहक रहीं डालें पलाश की, झूमीं शाखाएँ अमलतास की। मंजरियों से पल्लवित आम हैं, कोयल कितनी स्फूर्तिवान है। ओढ़े सरसों पीली चुनरी, फूली-फूल…
मैं जगत का दास हूँ - कविता - इन्द्र प्रसाद
जग मुझे कुछ भी कहे, पर मैं जगत का दास हूँ। दोष तारों सा लिए जो, मैं वही आकाश हूँ॥ मन उसी में रम रहा जो वास्तव में है नहीं, उस तरफ़ जाता…
आशंका - कविता - प्रवीन 'पथिक'
एक घना अँधेरा! मेरी तरफ़ आता है मुँह बाए, और ढक देता सम्पूर्ण जीवन को; अपनी कालिमा से। किसी सुरंगमय कंदराओं में से, सिसकने की आवाज़ आती…
राष्ट्र की उपासना ही, अश्वमेधिक लक्ष्य हैं - गीत - उमेश यादव
राष्ट्र की उपासना ही, आश्वमेधिक लक्ष्य है। पराक्रम से राष्ट्र रक्षा, यज्ञ संस्कृति रक्ष्य है॥ अश्व है प्रतीक साहस, शौर्य और पुरुषार्थ …
बिंदु-बिंदु शिल्पकार है - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमित ना हो दायरा उर के द्वार का, प्रकृति भी देती परिचय दाता उदार का। यूँ ही नहीं होता सृजन उपलब्धि के आधार का, छूपी हुई नींव में आरंभ…
अपनापन - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खोता जीवन सुख अपनापन, वह स्वार्थ तिमिर खो जाता है। कहँ वासन्तिक मधुमास मिलन, पतझड़ अहसास दिलाता है। भौतिक सुख साधन लिप्त मनुज,अपनापन क…
मेरा गाँव - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
मेरे गाँव की सोधीं मिट्टी, अम्मा की भेजी चिट्ठी। स्कूल से हो जब छुट्टी, वो बात-बात पर खुट्टी। हर बात याद क्यूँ आती? ना भूली मुझसे जाती…
करो मात-पिता सेवा - मनहरण घनाक्षरी छंद - अजय कुमार 'अजेय'
करो मात-पिता सेवा, मिले जीवन मे मेवा, ऐसे महानुभाव का, भाग्योदय मानिए। सदा सेवा भाव रखे, मान सम्मान भी करे, जग में सबसे बड़ा, बादशाह ज…
श्रीराम वनवास - मुक्तक - संजय परगाँई
सुनो अवधेश तन मन में, सदा रघुकुल धरोगे तुम, दिया जो था वचन तुमने, उसे पूरा करोगे तुम। यही बस माँगती तुमसे, कहे ये आज कैकेयी, भरत को सौ…
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