ऋतुराज बसंत - कविता - गणेश भारद्वाज

क्षितिज के पार जाना है - गीत - उमेश यादव | Geet - Kshitij Ke Paar Jaanaa Hai - Umesh Yadav. नारियों पर गीत/कविता। Hindi Poetry On Womens
पहन बसंती चोला देखो,
अब शील धरा सकुचाई है।
कू-कू करती कोयल रानी,
लो सबके मन को भाई है।

हरयाली है वन-उपवन में,
कण-कण में सौरभ बिखरा है।
रंग-बिरंगे फूल खिले हैं,
हर जन का मानस निखरा है।

पीली सरसों अब खेतों की,
कितनी ही ख़ुशियाँ लाई है।
मनभावन सारा आलम है,
कण-कण में प्रीत समाई हैं।

ठण्डी-ठण्डी व्यार चली है,
तन मन को छूकर जाती है।
सुस्त पड़ी हर काया में यह,
यौवन सी आस जगाती है।

फूलों का रस लेकर तितली,
जब मस्ती में इतराती है।
मनभावन चंचल रंगों से,
तब कोमल भाव जगाती है।
 
नव पत्तों से पेड़ लदे हैं,
डालों पे यौवन छाया है।
फूलों पर इतराता भौंरा,
अब कलियों ने भरमाया है।

न गर्मी है न सर्दी है,
मौसम है हर्षाने वाला।
लाया है संगीत नया ही,
कोमल भाव जगाने वाला।
 

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