तलाश - कविता - प्रेम चेतना
रविवार, जुलाई 13, 2025
हर जीवन की मौन कथा – तलाश।
अशांति की गर्जना में शांति की प्यास,
अकेलेपन के वीराने में प्रेम के आस।
वेदना की राख में ईश्वर की झलक,
और मृत्यु की साँझ में जीवन की झिलमिलाहट।
जैसे तलाश ही जीवन का एकमात्र प्रयोजन हो,
हर श्वास, हर सोच, हर स्पंदन – बस एक तलाश।
मस्ती में बिछुड़े यार की तलाश
ममता में माँ की गोद की छाँव,
संरक्षण की छाया में पिता की नींव,
और बचपन की खिलखिलाहट में भाई-बहन की मृदु पुकार।
हर क्षण, हर कालखण्ड, बस एक ही राग – तलाश।
प्यास में अमृत की अभिलाषा
भूख में अन्न की करुणा
जीवन के पल-२ में प्रकृति की गोद की माँग।
हर अनुभूति, हर चाह – एक अदृश्य संवाद
जैसे सारा अस्तिव ही बन गया हो तलाश का प्रयाय।
हर तलाश में कितना प्रेम है,
कितनी तड़प कितना दुःख – और उसी में छुपा परम सुख।
अगर न हो तलाश हृदय में,
तो कैसा सुना, कैसा शव-जैसा हो मानव जीवन।
क्यूँकि तलाश ही तो देती है,
हर दिशा को अर्थ, हर शून्य को आशा।
बिना तलाश के तो जैसे
कुछ पाया ही न जाए, कुछ जिया ही न जाए।
पर...
कभी एक क्षण ऐसा भी आता है–
जब तलाश भी साथ छोड़ जाती है,
और रह जाता है केवल,
एक गहरा, अनंत ख़ामोश खालीपन।
न कोई प्रश्न, न कोई उत्तए,
बस एक अतल मौन,
जिसमें डूबता चला जाए आत्मा का दीप,
जहाँ शेष रह जाता है – केवल शून्य केवल शांति... केवल शुन्य।
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