आत्मा से कटे वाई-फ़ाई से जुड़े - कविता - सुशील शर्मा

आत्मा से कटे वाई-फाई से जुड़े - कविता - सुशील शर्मा | Hindi Kavita - Aatma Se Kate Wi Fi Se Jude - Sushil Sharma. अपनों पर कविता
हम अब एक-दूसरे
के पास नहीं रहे,
हाथ से हाथ छूटे नहीं,
पर छूने की इच्छा मर चुकी है।

बगल में बैठा इंसान
अब बस एक स्थिति है
न ज़िंदा, न मरा,
बस उपस्थित।

हमने आँखों में
देखना छोड़ दिया है,
क्योंकि वहाँ अब सवाल
नहीं जलते,
बल्कि
उत्तर माँगते चेहरे बैठे हैं
थके, झुके, संशय में डूबे।

हम बात करते हैं,
पर बातें नहीं होतीं,
जैसे शब्दों ने आत्मा छोड़ दी हो।
हम मुस्कराते हैं,
पर वो मुस्कराहट
किसी खोखली दीवार पर
टंगे पुराने कैलेंडर सी लगती है 
जिसे कोई देखता नहीं अब।

जब कोई टूटता है अब,
तो आवाज़ नहीं आती,
क्योंकि हम इतने मग्न हैं
अपनी टूटी हुई स्क्रीन में,
कि असली दरारें
देख ही नहीं पाते।

हम संवेदनशील हैं
पर दुनिया के लिए,
कभी-कभी।
अपने पड़ोस के लिए
हम निर्लिप्त हैं,
अपनों के आँसुओं के लिए
हम व्यस्त हैं।

कोई अपना दुख कहता है,
तो हम उसे
मानसिक बीमार कहते हैं।
किसी की पीड़ा
अब समाचार बनती है,
सम्बंध नहीं।

क्या तुमने महसूस किया है
कभी-कभी लोग
मुस्कराते हुए भी
सिसक रहे होते हैं?
और हम,
इतने अभ्यस्त हो चुके हैं 
शोर के
कि वो सिसकी अब
हमारे कानों तक नहीं आती।

हम,
जो एक समय में
आश्रय थे एक-दूसरे के लिए,
अब
अजनबी कमरों में
वाई फ़ाई के ज़रिए जुड़े
पर आत्मा से अलग लोग हैं।

हमें रिश्ते नहीं चाहिए,
हमें नेटवर्क चाहिए।
हमें सत्य नहीं चाहिए,
हमें सुविधा चाहिए।
हमें संवाद नहीं चाहिए,
हमें स्टेटस अपडेट चाहिए।

कभी-कभी सोचता हूँ
क्या इंसान अभी भी इंसान है?
या वो धीरे-धीरे
एक प्रतिक्रिया बन चुका है,
जिसे कोई लाइक कर दे
तो अच्छा लगता है,
वरना
वो ख़ुद को ही
अनदेखा करता है।

सुशील शर्मा - नरसिंहपुर (मध्य प्रदेश)

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