संदेश
बेचैनी - कविता - अमित राज श्रीवास्तव 'अर्श'
यह बेचैनी क्या है? अधूरी आकांक्षा? या पूरी होने का भय? मन की इस बेकली का अंत कहाँ? शायद कहीं नहीं। शायद यही उसका स्वरूप है— एक निरंतर …
जंगली मन - कविता - सुनीता प्रशांत
इन हरे भरे जंगली पेड़ों जैसे मैं भी हरी भरी हो जाऊँ मनचाहा आकार ले लूँ कितनी भी बढ़ जाऊँ फैल जाऊँ दूर-दूर तक या आकाश को छू जाऊँ रोकना…
मन - कविता - इन्द्र प्रसाद
मन मधुर स्वप्न गाता है। वह राग मुझे भाता है॥ मन की गति सबसे न्यारी, है सब गतियों पर भारी। जब अंकुश हट जाता है, बन जाता अत्याचारी।…
द्वंद - कविता - पालिभा 'पालि'
कुछ घटनाएँ अक्सर छोड़ देती है, मन में कुछेक सवाल, ये सवाल ही छेड़ देती है मन में अक्सर द्वंद, ये द्वंद उथल-पुथल मचा देती है पैदा करके …
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है - कविता - अतुल पाठक 'धैर्य'
मन आज मेरा हारा हुआ जुआरी है, मन जीता जिसने वह अनुपम छवि मनुहारी है। मुद्दतों बाद मन के आँगन में ख़ुशियों की प्यारी सी झलकारी है, जैसे …
मन - कविता - अखिलेश श्रीवास्तव
मन चंचल है तुम ये जानो, मन की शक्ति को पहचानो। मन की गति का अंत नहीं है, ये तुम अपने मन से जानो॥ मन की भाषा समझ सको तो, मन से उसक…
मन की पीर - गीत - अंशू छौंकर
तुम तो दिल बहलाते आए, मन की पीर सुनो तो जानु। सेमल सुमन नहीं अभिलाषा, प्रेरण पुष्प बनो तो जानू। उर से उर की जान सकोगे, दर्द दिया पहचान…
मन - कविता - श्याम सुन्दर अग्रवाल
तेरा मेरा उसका मन, अजब पहेली सबका मन, मन का जाने मन न कोई, मन ही जाने मन का मन। चाहे ये हो जाए मन, चाहे वो हो जाए मन, भला कहीं पूरा हो…
मन का कोरा पन्ना - कविता - राकेश कुशवाहा राही
बरसों से मन का कोरा पन्ना कोरा ही रह गया, शायद मोहब्बत को मेरा पता भूला ही रह गया। सुना है लिखने के लिए दर्द का होना ज़रूरी है, सोचकर य…
नवजोत उमंगें हर पल मन - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
नवजोत उमंगें हर पल मन, उल्लास नवल हो जाता है। नव ध्येय भोर कर्त्तव्य किरण, विश्वास सबल बन जाता है। नित नवल सोच नव शोध सुपथ, उन्मुक्त उ…
सुलझता मन - कविता - मेहा अनमोल दुबे
सुलझता मन मेरा– उलझनो में, उलझते-उलझते बहुत उलझ गई ज़िंदगी। ज़िंदगी "ज़िंदगी" नहीं उलझा माँझा लगती है कभी-कभी। न ख़्वाहिश न उम…
मन भाव विह्वल - कविता - सीमा वर्णिका
प्रस्तर हृदय में कैसी यह है हलचल, क्यों तुमसे मिल मन आज भाव विह्वल। बंजर ज़मीं सा उजड़ा हुआ मन का चमन, प्रिय विरह में सुलगती थी मन में …
सशंकित-चित्त - कविता - प्रवीन 'पथिक'
चिर परिचित दो आँखें, मुझे अपनी ओर बुलाती हैं। पास जाता तो, छुप जाती अँधेरी दीवारों के बीच। एक आहट, जिन्हे रोज़ महसूस करता हूँ। रात्रि क…
मन - कविता - अतुल पाठक 'धैर्य'
गूँगे मन ने आज पुकारा है तुमको, मन जीतने के लिए हारा है ख़ुद को। मन कविता करता मर्मस्पर्शी, मन भाव निकलते जादुईस्पर्शी। मन की कल्पना दि…
मेरा मन - कविता - आर्तिका श्रीवास्तव
रोशनी की हर एक किरण को भेदता सा मेरा मन, रात के अँधियारे को बस चीरता सा मेरा मन। है नहीं मालूम कैसे चल रही है श्वास यह, इन श्वास की गह…
मन विजय - कविता - मयंक द्विवेदी
सीमाएँ क्या होती है? असीमित बन बहना होगा। अनन्त है तेरी परिभाषाएँ, प्रबल है तेरी अभिलाषाएँ, कदम सुदृढता से रखना होगा। मुश्किले कमज़ोरिय…
तिरस्कृत मन - कविता - जगदीश चंद्र बृद्धकोटी
स्तब्ध मन हो रहा है जब क्रोध बाँटा जा रहा है, अनगिनत अवहेलनाओं से पुकारा जा रहा है। ख़ुद की कुंठा को छिपाने मुझको रोका जा रहा है, कटु …
मन की उड़ान - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
मिलन की उत्सुकता, मन हो रहा विकल। है निर्भर भाग्य पर, कामना होगी सफल।। आल्हाद है मन में, कुछ है विकलता। आशंका भी होती रही, छिपी न हो …
जो मन कहता - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेलुन तक़ती : 22 22 22 22 बंदिश में जीना, मरना है, फिर क्यों बंदिश से डरना है। सोच लिया है इसीलिए अब, जो म…
मन का कुछ अहसास कहो जी - ग़ज़ल - ममता शर्मा 'अंचल'
अरकान : फ़ेलुन फ़ेलुन फ़ेल फ़आल तक़ती : 22 22 21 121 मन का कुछ अहसास कहो जी, कोशिश कर कुछ ख़ास कहो जी। तिल भर भी बाकी हो यदि तो, मिलने की…
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