मन - कविता - इन्द्र प्रसाद

मन - कविता - इन्द्र प्रसाद | Hindi Kavita - Man - Indra Prasad. Hindi Poem On Mind. मन पर कविता
मन मधुर स्वप्न गाता है। 
वह राग मुझे भाता है॥ 

मन की गति सबसे न्यारी, 
है सब गतियों पर भारी। 
जब अंकुश हट जाता है, 
बन जाता अत्याचारी। 
ऐसी ही स्थितियों में, 
मन मतंग कहलाता है॥ 

मन को समझो मत गागर, 
यह है भावों का सागर। 
मंथन जब इसमें होता, 
तब होते भाव उजागर॥ 
जब भाव प्रबलतम होते, 
आश्रय तक बह जाता है॥ 

मन की गति बदले पल-पल, 
है इसी हेतु यह चंचल। 
दरिया में उसे डुबोए, 
जो पीछे देता है चल॥ 
इंद्रियाँ हैं इसकी सेवक, 
यह स्वामी कहलाता है॥ 

सुत चार हैं जिनके नाम, 
मद, लोभ, क्रोध औ काम। 
सिर पर बैठे रहते हैं, 
पल-पल छिन आठों याम॥ 
नर आत्मज्ञान पा करके, 
इन पर जय कर पाता है॥ 

इंद्र प्रसाद - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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