मनचाहा किसको मिला - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

मनचाहा किसको मिला - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Dohe - Manchaha Kisko Mila
मनचाहा किसको मिला, क्यों करता है क्रोध।
ईश कृपा जो कुछ मिला, करो तोष नव शोध॥

मनचाहा किसको मिला, चाहत समझ अनंत।
मत भटको लालच कुपथ, चाह नहीं है अंत॥

मनचाहा किसको मिला, कौन जगत सन्तुष्ट।
नित प्रयास हो श्रेष्ठतम, क्यों होते हो रुष्ट॥

पौरुष निज कर्त्तव्य है, सकल सिद्ध फल योग।
मनचाहा किसको मिला, शोक बड़ा है रोग॥

रखो देशहित चाह मन, निरत राष्ट्र निर्माण।
मनचाहा किसको मिला, क्यों होते निष्प्राण॥

निज पौरुष जो कुछ मिला, पाओ तुम संतोष।
वृथा विभव मद लोभ तम, हेतु घृणा छल रोष॥

मनचाहा किसको मिला, कठिन लोक कथनीय।
निर्भर समझो तुष्टि मन, वैसा स्वीकरणीय॥

मनचाहा नित असम्भव, कर्म नियति संयोग।
आहत मत कर चित्त को, जो पाया कर भोग॥


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