मैं बेचारा तन्हा अकेला - कविता - बाल कृष्ण मिश्रा
मंगलवार, नवंबर 25, 2025
मैं बेचारा तन्हा अकेला
भीगी राहों पर
ढूँढ़ रहा, ख़ुद को, कहीं।
सड़कें भीगीं, शहर धुँधला,
आसमान में घना कोहरा।
भीगे आँखों से छलके
यादों की धार,
हर बूँद में गूँजे तेरा प्यार।
शहर की भीड़ में, मैं ख़ुद से पूछता,
अपनी परछाई से ही अब मैं रूठता।
पत्थरों में चमक, पर दिल में अँधेरा,
टूटे सपनों सा लगता जीवन।
खोया है कुछ, या पाया सवेरा?
मैं मुस्कुराता नहीं मगर,
हार भी मानता नहीं।
सपनों की राख से,
गढ़ता कोई सितारा।
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