मैं बेचारा तन्हा अकेला - कविता - बाल कृष्ण मिश्रा

मैं बेचारा तन्हा अकेला - कविता - बाल कृष्ण मिश्रा | Tanhai Kavita - Main Bechaara Tanha Akela - Baal Krishna Mishra. Alone Hindi Poem | तन्हाई पर कविता
मैं बेचारा तन्हा अकेला
भीगी राहों पर
ढूँढ़ रहा, ख़ुद को, कहीं।

सड़कें भीगीं, शहर धुँधला,
आसमान में घना कोहरा।

भीगे आँखों से छलके
यादों की धार,
हर बूँद में गूँजे तेरा प्यार।

शहर की भीड़ में, मैं ख़ुद से पूछता,
अपनी परछाई से ही अब मैं रूठता।

पत्थरों में चमक, पर दिल में अँधेरा,
टूटे सपनों सा लगता जीवन।
खोया है कुछ, या पाया सवेरा?

मैं मुस्कुराता नहीं मगर,
हार भी मानता नहीं।
सपनों की राख से,
गढ़ता कोई सितारा।

बाल कृष्ण मिश्रा - नई दिल्ली (दिल्ली)

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