धीरेंद्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
शनिवार, नवंबर 15, 2025
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
काश की मिल पाता मैं उनसे
हाल दिलों के गाता
काश की इस बंजर धरती पर
अपने रंग उगाता
उसकी क़ातिल आँखों ने फिर हमपे रोब उछाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसका मिलना लगा की जैसे
नदियों के तट अम्बर
जैसे अपनी मंज़िल को
पा लेता कोई सिकंदर
उसकी ख़ामोशी ने मुझमें मधुशाला भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसके कांधे पर सर रख
उसकी धड़कन सुन पाऊँ
वो मेरी होकर रह जाए
मैं उसका हो जाऊँ
उसने मेरे सूने दिल में किलकारी भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
उसकी अँगड़ाई से जैसे
थम जाती पुरवाई
थम जाती हो जैसे
जाने कितनों की तरुणाई
मैंने पूजा उसको जैसे पूजे कोई शिवाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर

