इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला - कविता - धीरेन्द्र पांचाल | Hindi Kavita - Ik Devi Ne Is Dil Ko Devalay Kar Daala | Hindi Poem On Love | प्रेम पर हिंदी कविता
मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला 
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

काश की मिल पाता मैं उनसे
हाल दिलों के गाता
काश की इस बंजर धरती पर
अपने रंग उगाता
उसकी क़ातिल आँखों ने फिर हमपे रोब उछाला 
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

उसका मिलना लगा की जैसे
नदियों के तट अम्बर
जैसे अपनी मंज़िल को
पा लेता कोई सिकंदर
उसकी ख़ामोशी ने मुझमें मधुशाला भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

उसके कांधे पर सर रख
उसकी धड़कन सुन पाऊँ
वो मेरी होकर रह जाए
मैं उसका हो जाऊँ
उसने मेरे सूने दिल में किलकारी भर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

उसकी अँगड़ाई से जैसे
थम जाती पुरवाई
थम जाती हो जैसे
जाने कितनों की तरुणाई
मैंने पूजा उसको जैसे पूजे कोई शिवाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

मैंने अपनी जान हथेली पर उसके कर डाला
इक देवी ने इस दिल को देवालय कर डाला

धीरेंद्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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