पाप की कमाई - गीत - महेश कुमार हरियाणवी | निरंकार भजन
बुधवार, नवंबर 26, 2025
नफ़रत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज़ गँवाई॥
ना दान दिया ना मान किया
मूर्खता पर अभिमान किया।
पैसा-पैसा जोड़-जोड़ कर
हीरा जीवन बलिदान किया॥
लालच के रंग में रज-रज कर
दिन रात करी चतुराई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज़ गँवाई॥
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।
बचपन गया जवानी बीती
पुष्पित रीत सुहानी बीती।
पात-पात तुम्हें याद दिलाए
रह ना जाए गागर रीति।
हर लम्हा-लम्हा बीत रहा
समय देता नहीं दिखाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज़ गँवाई॥
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।
जब पाप का घोड़ा दोड़ेगा
रथ का पहिया मुख मोड़ेगा।
किए कर्म सभी आगे आएँ
परिणाम न पीछा छोड़ेगा॥
पगले राम नाम को रटले
हर कष्ट की एक दवाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज़ गँवाई॥
तुझको देख रहे रघुराई
तुझको देख रहे रघुराई।
नफ़रत का बनकर व्यापारी
क्यों पाप की करे कमाई।
अनमोल है क़ीमत साँसों की
जो व्यर्थ ही रोज़ गँवाई॥
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