समुचित अनुचित चिन्तना - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'

समुचित अनुचित चिन्तना - दोहा छंद - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज' | Dohe - Samuchit Anuchit Chintna
हो ईमान पुरुषार्थ में, संयम बुद्धि विवेक।
सुख वैभव ख़ुशियाँ सुयश, उचित वक्त अभिषेक॥

शिक्षित हो सबजन वतन, सबका हो उत्थान।
हो प्रबंध शिक्षा सुगम, रोज़गार सम्मान॥

आशा जीवन की किरण, ज्योतिर्मय पुरुषार्थ।
बस संयम धीरज सुपथ, बढ़ो देश परमार्थ॥

ग़लत काम न कीजिए, रखें ध्यान परिणाम।
सत्पौरुष देता सुयश, धन वैभव सुखधाम॥

सुमति विवेकी सत्पथी, करते समुचित काम।
रक्षक मानव मूल्य का, जीवन यश सुखधाम॥

देश धर्म परहित सुयश, लिखें ज़िंदगी लेख।
महके जीवन सुख चमन, प्रेरकत्व अभिलेख॥

पद सत्ता के खेल में, छीना झपटी साज।
लोकतंत्र नेता क़हर, रोए जन समाज॥

तज मर्यादित आचरण, छोड़ा लाज विचार।
कहाँ त्याग सद्भावना, परहित पौरुष सार॥

आरव जीवन कर्म ही, खिले सफलता फूल।
महके नव चिन्तन प्रगति, रिश्ते हों अनुकूल॥

समुचित अनुचित चिन्तना, निर्भर सुमति विवेक।
खिले कार्य आशा किरण, सद्विचार सच नेक॥


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