संदेश
मुक़द्दस घड़ी हैं 17 - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सर्द हवा का सुरूर, धनक की ये ग़ज़ब पैहन छाई हैं, आँखों में चमक लबों पे गीत वाह क्या बहार आई हैं। मिरे तसब्बुरात में जो तितली उड़ रही थी …
ख़ुद को ही सर्वश्रेष्ठ न समझें - आलेख - सुधीर श्रीवास्तव
श्रेष्ठ या सर्वश्रेष्ठ होना हमारे आपके जबरन ख़ुद को घोषित करने की ज़िद कर लेने भर से नहीं हो जाता। परंतु ख़ुद को श्रेष्ठ अथवा सर्वश्रेष्ठ…
राष्ट्र चेतना - कविता - बृज उमराव
राष्ट्र चेतना की धुन में, जन मानस ने ललकारा है। सीमा प्रहरी सीना ताने, यह भारत सबसे प्यारा है।। नज़र सामने उन्नत मष्तक, तन में फौजी की …
अर्थ दे दो ना - कविता - शुचि गुप्ता
दिग्भ्रमित से भाव मेरे शब्द दे दो ना, व्यर्थ जीवन पटकथा को अर्थ दे दो ना। दृग तुम्हें ही ढूँढ़ते हैं सब दिशाओं में, दो नयन को देव अपने …
दौलत यहाँ आज तक कमा न सका - ग़ज़ल - श्रवण निर्वाण
अरकान : मुस्तफ़इलुन फ़ाइलुन फ़आल फ़अल तक़ती : 2212 212 121 12 दौलत यहाँ आज तक कमा न सका, अपना शहर में मकाँ बना न सका। था एक आख़िर अदद …
नयी परम्परा की खोज - पुस्तक समीक्षा - विमल कुमार प्रभाकर
पुस्तक - नयी परम्परा की खोज लेखक - डॉ॰ शिव कुमार यादव समीक्षक - विमल कुमार प्रभाकर प्रकाशक - लोकभारती प्रकाशन, प्रयागराज प्रकाशन वर्ष …
मैं पिता जो ठहरा - कविता - विजय कृष्ण
मैं पिता जो ठहरा- प्यार जता नहीं पाया। बच्चे माँ से फ़रियाद किया करते थे, पापा को घूमने के लिए मना लो, ये मनुहार किया करते थे। बच्चों स…
यतीम सा खड़ा मौन खँडहर - कविता - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
खँडहरों में गुमसुम विरासत, बेज़ुबाँ कहती गौरव सल्तनत, बेशूमार दौलत अय्याशियाँ, गूँजते कर्णप्रिय संगीत स्वर, विपिन बना आज खँडहर यतीम…
मिला झूठ को मान - दोहा छंद - संत कुमार 'सारथि'
चमत्कार दिखला रहा, कलयुग में दिन रात। मिले झूठ को मान है, सच्चाई को मात।। उलटी गंगा बह रही, देखो करके ध्यान। सच्चाई मुँह ताकती, मिला झ…
आस्था - गीत - रमाकांत सोनी
भावों के भँवर में बोलो बहकर कहाँ जाओगे, मंदिर सा मन ये मेरा कभी दौड़े चले आओगे। आस्था की ज्योत जगाकर दीपक जला लेना, भाव भरे शब्द सुमन …
अकेलापन - लघुकथा - निर्मला सिन्हा
"बहु ओ बहु! सुबह के सात बज गए हैं चाय कब पिला रही हो?" "जी मम्मी जी! बस अभी ला रहे हैं।" "राधिका तुमने मेरी फ़…
ख़ाकी - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
हमें सुलाते जाग-जाग कर, जिनसे है आबाद वतन। जिनका धर्म त्याग सेवा है, उस ख़ाकी को कोटि नमन। शूरवीर ये सच्चे योद्धा, इनसे ही है चैन अमन। …
खोया बचपन - कविता - सीमा वर्णिका
आ लौट चलें बचपन की ओर, जहाँ नहीं था ख़ुशियों का छोर। दिन-रात खेलकूद की ख़ुमारी, पढ़ाई कम और मस्ती पर जोर। वह ग्रीष्मावकाश होते थे वरदान,…
सुबह हो रही है - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
उठो! मेरे आत्मा के सूरज सुबह हो रही है तरु शिखाओं की ऊपरी फुनगियों पर, उतर रही है- उजले सूरज की चंचल धूप कोमल दल पर किरनें, दुब पर टँग…
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
इंसाँ की ख़्वाहिशों की कोई इंतिहा नहीं, दो गज़ ज़मीं भी चाहिए दो गज़ कफ़न के बाद। Insaan Ki Khwahishon Ki Koi Intiha Nahin, Do Gaz Zam…
राम का वन गमन - सरसी छंद - महेन्द्र सिंह राज
ज्ञात हुआ जब सीता जी को, बन को जाते राम। चरणों में सर रखकर बोली, सुनिए प्रभु सुखधाम।। अपने चरणों की दासी को, ले लो अपने साथ। पत्नि धर…
तुम कविता का पूर्ण भाव हो - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं कविता की प्रथम पंक्ति हूंँ, तुम कविता का पूर्ण भाव हो। मैं तो केवल तुकबंदी हूंँ, तुम लहरों में रस बहाव हो। मैं शब्दों का गठबंधन हू…
सूर्य की धरती - कविता - मनस्वी श्रीवास्तव
मैं धरती तू सूर्य मेरा... तेरे "प्रकाश" से चमक रही, नित हरित दूब सी महक रही, विघ्नों के विराम अवसर पर, शरद सा शीतल हुआ सवेरा…
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भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
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मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर