अरकान : मुस्तफ़इलुन फ़ाइलुन फ़आल फ़अल
तक़ती : 2212 212 121 12
दौलत यहाँ आज तक कमा न सका,
अपना शहर में मकाँ बना न सका।
था एक आख़िर अदद चिराग़ वही,
मैं चाहकर भी उसे जला न सका।
हरदम रहे पास दूर आज हुए,
मैं हाल मेरा कभी बता न सका।
दीवार है मज़हबी बनी तो हुई,
कोई उसे आज तक गिरा न सका।
चलना पड़ा शूल पर उन्हें भी यहाँ,
मैं राह में फूल तो सजा न सका।
दुश्मन बने आज, साथ थे वे सदा,
वादा किया जोश में निभा न सका।
हर बार हारा मगर वे जीत गए,
मैं वक़्त रहते रज़ा दिखा न सका।
श्रवण निर्वाण - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)