राष्ट्र चेतना - कविता - बृज उमराव

राष्ट्र चेतना की धुन में,
जन मानस ने ललकारा है।
सीमा प्रहरी सीना ताने,
यह भारत सबसे प्यारा है।।

नज़र सामने उन्नत मष्तक,
तन में फौजी की वर्दी।
मरुधर की हो रेत उड़ रही,
या पहाड़ की हो सर्दी।।

भारत की गौरव गाथा का,
सब मिलकर गुणगान करें।
प्राचीन संस्कृति अरु गरिमा पर,
सब मिल कर अभिमान करें।।

उन्नत माथा हिम शिखरों का,
नीचे पग सागर धोता।
पूर्वोत्तर की हरी वादियाँ,
पस्चिम कच्छ का रण होता।।

राष्ट्र चेतना की ज्वाला,
वीरों ने सदा जलाई है।
आग न ठंडी होने पाए,
यह तो इक अँगड़ाई है।।

विज्ञान और शिक्षा का स्तर,
ऊँचे तक पहुँचाना है।
अन्वेषण की नव पद्धति से,
प्रक्रिया सरल बनाना है।।

हर बालक वीर शिवाजी है,
भाभा का इनमे रूप छिपा।
अवसर मिलने की देरी है,
सबको प्रतिभा प्रतिरूप मिला।।

देश के वीरों की क़ुर्बानी,
को थोड़ा तुम याद करो।
भूले बिसरे चित्रों पर तुम,
थोडा सा रंग आज भरो।।

पुकार सुनों भारत माँ की,
शब्द बाण से छलनी सीना।
क्रोधाग्नि चक्षु से जब निकले,
भष्म हो दुश्मन दैत्य कमीना।।

बृज उमराव - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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