हिंदी को अपनाओ जी - कविता - सौरभ तिवारी

जिसके मीठे बोलों से,
दिल की दूरी मिट जाती हो।
जिससे अक्षर-अक्षर से,
मिट्टी की ख़ुशबू आती हो।
औरों की बोली क्या रटना,
अपनी को गले लगाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

हिंदी राष्ट्र की शक्ति है,
जन-जन की अभिव्यक्ति है।
मानस की रसधार यही है,
ये तुलसी की भक्ति है।
जिस बोली में राम बसे हों,
उसको मत बिसराओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

संस्कृति के संस्कार भरे हैं,
शब्दो की इसमें मर्यादा।
शाश्वत सत्य नियम है जिसके,
थोड़ा कम ना थोड़ा ज़्यादा।
मर्यादित और शुद्ध वाणी की,
कुछ तो लाज बचाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

आधुनिकता की चकाचौंध में,
हिंदी को हम भूल गए।
लूली लँगड़ी भाषाओं पर,
जाने क्यूँ हम फूल गए।
पल-पल नियम बदलती भाषा,
मत उसके गुण गाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

कभी शिकागो में गूँजी थी,
ज़ीरो की महिमा हिंदी में।
विश्व हुआ स्तब्ध जानकर,
अर्थ बदलता बिंदी में।
ऐसी अद्भुत भाषा अपनी,
इसको नहीं भुलाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

मीरा तुलसी सूर जायसी,
यह कबीरा की वाणी है।
और सुभद्रा का स्वर कहता,
ख़ूब लड़ी मर्दानी है।
गाया राष्ट्रकवि मैथिल ने,
वही राग सब गाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

इस भाषा में गणित छुपा है,
चौपाई कोई उठा लो।
मात्रा सोलह ही पाओगे,
कितने जोड़ लगा लो।
ग्यारह तेरह के दोहों की,
महिमा सबको बतलाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

भारत माँ की आन है हिंदी,
शब्दों का परिधान है हिन्दी।
अ से ज्ञ तक के अक्षर में,
सारा हिंदुस्तान है हिन्दी।
माँ का सर ना झुकने देंगे,
सब मिल शपथ उठाओ जी।
हिंदी को अपनाओ जी।।

अलंकार और रस से शोभित,
हिन्दी सबसे प्यारी है।
इसका मान बढ़ाना अपनी,
नैतिक ज़िम्मेदारी है।
गर्व हमें अपनी भाषा पर,
जय-जय हिन्दी गाओ जी।
हिन्दी को अपनाओ जी।।

सौरभ तिवारी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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