हिन्दी भाषा: दशा और दिशा - कविता - सीमा वर्णिका

हिंदी भाषा की आज दशा और दिशा,
ज्यों दिवस संग मिश्रित हो जाए निशा।
विविध देशज विदेशज भाषा का मेल,
भाषा की ऐसी विकृति नहीं देती तिशा।।

देववाणी संस्कृत से हुआ था प्रादुर्भाव,
अथाह शब्दसागर करें व्यक्त मनोभाव।
सर्वग्राह्यी प्रतिमान है बौद्धिक वर्ग का,
शुद्ध हिंदी अब अपरिहार्य आविर्भाव।।

लिपि देवनागरी लिए वैज्ञानिक आधार,
सर्वाधिक बोली हिंदी सर्वसम्मत संसार।
भाषाओं में प्राप्त तीसरा स्थान विश्व में,
संवैधानिक भाषा सीमित रहे अधिकार।।

विभिन्न विधा अलंकार छंद आदि रूप हैं,
अभिव्यंजना की कहीं छाया कहीं धूप है।
तुलसी, जायसी, मीरा, सूर, रसखान की,
मानस गीत गोविन्द सुजान ग्रन्थ अनूप हैं।।

सीमाओं में क़ैद रह गई बृहत् हिंदी भाषा,
राष्ट्रभाषा की रही सदा बहु जन प्रत्याशा।
लक्ष्य यही है भाषा उच्च मान स्थान पाए,
गृहस्वामिनी हिन्दी मधुर प्रिय मातृभाषा।।
  
सीमा वर्णिका - कानपुर (उत्तर प्रदेश)

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