संदेश
अररररे! ये क्या कर आए तुम - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ऊलुन मफ़ऊलु फ़ऊलुन फ़ा तक़ती : 122 221 122 2 अररररे! ये क्या कर आए तुम, उजाड़ कर धूप के साए तुम। इक अपना घर बनाने के वास्ते,…
मानवता का पतन - कविता - आशीष कुमार
शर्मसार हुई माँ वसुंधरा पाप पुण्य से आगे बढ़ा, क्षत-विक्षत हुआ कलेजा आँचल होने लगा मैला। कामी लोभी क्रोधी घमंडी एक चेहरे पर कितने मुखौ…
संकट जगाता मानवता - कविता - डॉ. रवि भूषण सिन्हा
मानव पर जब संकट आता है, मानवता जाग जाता है। गली-गली या मुहल्ले हो बुरा वक़्त जब आता है। आँखों में खटकने वाला भी, आँखों का तारा बन जाता …
प्रेम और मानवता - कविता - आकाश सिंह "अभय"
प्रेम और मानवता है, मानव जीवन का मूल! जिनके हृदय मानवता नहीं, करता वह इंसान हिंसा वाली भूल करता वह इंसान हिंसा वाली भूल!! प्रेम और मा…
मैं - कविता - नीरज सिंह कर्दम
काश ! कोई पूछे मुझसे कि मैं क्या हूँ ? मैं कौन हूँ ? मैं सर उठाकर बताने में असमर्थ हूँ । क्योंकि मैं इंसान नही रह गया हूँ । मैं हिंसा,…
मानवता - कविता - पुनेश समदर्शी
काश! ऐसा कोई जतन हो जाये, जाति-धर्म का पतन हो जाये। फिर ना रहे आपस में भेदभाव, सारे जहाँ का एक वतन हो जाये। सभी में हो अपनेपन का भाव, …
ये दौर कब जाएगा - कविता - अरविन्द कालमा
कब यहाँ जातिवाद खत्म हो पाएगा कब मानव सुखी जीवन जी पाएगा। इस दौर में मानवता शर्मसार हो रही पता नहीं ये दौर कब जाएगा।। इस दौर ने झेली ब…
मानवता - कविता - प्रवीन "पथिक"
देखा बुढ़िया को, घास छिल रही थी पथ के किनारे। अस्थि पंजर ही अवशेष, काया झुकी, त्वचा पर झुर्रियां। बयां कर रही थी उसकी जीवन गाथा।…
विशेष रचनाएँ
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