मैं - कविता - नीरज सिंह कर्दम

काश ! कोई
पूछे मुझसे
कि मैं क्या हूँ ?
मैं कौन हूँ ?
मैं सर उठाकर
बताने में
असमर्थ हूँ ।
क्योंकि
मैं इंसान नही रह गया हूँ ।
मैं हिंसा, व्याभिचार, भ्रष्टाचार
और अपराध का
प्रतिरूप बन चुका हूँ ।
मैं हिन्दू मुस्लिम
सिख ईसाई,
जाति धर्म में 
बट चुका हूँ ।
मंदिर मस्जिद
बन चुका हूँ ।
मानों जैसे मुझे
मानवता से 
सरोकार नही है ।
मैं राजनीति का
वो हिस्सा बन गया हूँ ।
जो लोगों से झूठे वादे कर
सत्ता हासिल करते हैं ।
और छोड़ देते हैं
उन्हें उनके हाल पर ।
और भूल जाते हैं
अपने कर्तव्यों को ।
मुझे तो अब
आईने से भी
द्वेष हो गया है ।
क्योंकि
उसमे दिखता है कि
मैं एक सीधा साधा
इंसान होते हुए भी
आज कितना खुंखार हो गया हूँ ।
आज मैं 
मैं नही रहा ।

नीरज सिंह कर्दम - असावर, बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)

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