मानवता - कविता - पुनेश समदर्शी

काश! ऐसा कोई जतन हो जाये,
जाति-धर्म का पतन हो जाये।
फिर ना रहे आपस में भेदभाव,
सारे जहाँ का एक वतन हो जाये।
सभी में हो अपनेपन का भाव,
अपना-पराया सब खत्म हो जाये।
जाना सभी को है एक दिन यहाँ,
लालच में न ईमान खतम हो जाये।
सबक यही है जिंदगी का बन्दे,
सबका भला तेरा करम हो जाये।
ये दौलत, बंग्ला, गाड़ी सब मेरे हैं,
तुझको न ये झूठा भ्रम हो जाये।
नंगा आया था, नंगा ही जायेगा,
मानवता ही तेरा धरम हो जाये।
काश ऐसा कोई जतन हो जाये,
जाति-धर्म का...

पुनेश समदर्शी - मारहरा, एटा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos