संदेश
अंतिम संस्कार का विज्ञापन - कहानी - मानव सिंह राणा 'सुओम'
विज्ञानपन देखा तो हिल गए राजमणी त्रिपाठी। “कैसा कलियुग आ गया है? अब माँ बाप के लिए बच्चों पर इतना समय नहीं कि वह उनको अपना समय दे सके …
देर कर दी आते-आते - गीत - रमाकांत सोनी 'सुदर्शन'
ख़ूब कमाया धन दौलत, थक गए तुम्हें बुलाते, प्राण पखेरू उड़ गए उनके, जन्मदाता कहलाते। उठ गया साया सर से तेरा, कभी पुत्र धर्म निभाते, बुढ़…
मुखाग्नि - कहानी - डॉ॰ वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज
बंसीलाल अब एकदम बूढ़े हो चले थे। अपने से चलना-फिरना भी अब मुश्किल-सा हो रहा था। पाँच-पाँच बेटे पर सभी अपने-अपने मतलब के। पत्नी पहले ही…
हम उस युग के बेटे हैं - गीत - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
हम उस युग के बेटे हैं जब, घर-घर घर होते थे। घर के मालिक भी हम ही, हम ही नौकर होते थे॥ सबसे पहले माँ उठती जब, रात बीत जाती थी। चकिया पर…
कुल की शान - कविता - विजय कुमार सिन्हा
जिन उँगलियों को पकड़कर पिता ने चलना सिखाया, उसी वक्त वह अनकहे ही कह देता है– “जीवन के हर क्षण में तुम्हें प्यार करेंगे” पर प्रकट भाव म…
पुत्र का संदेश - गीत - अभिनव मिश्र 'अदम्य'
ओ चतुर कागा! हमारे गाँव जाना। पुत्र का संदेश उस माँ को सुनाना। मातु से कहना कि उसका सुत कुशल है, याद वो करता उन्हें हर एक पल है। छोड़ द…
वृद्धाश्रम में माँ को बेटे का इंतज़ार - कविता - डॉ. ललिता यादव
एक माँ जिसे उसका बेटा वृद्धाश्रम में हर रविवार मिलने आने की बात कहकर छोड़ गया है। माँ उसका इंतज़ार कर रही है, कविता के रूप में कहती है-…
और मैं बन गई मम्मा - संस्मरण - ब्रह्माकुमारी मधुमिता "सृष्टि"
गोधूलि बेला में, मैं ध्यान करने जा रही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी, बेटू ने कहा "मम्मा मेरा सीजीएल का रिजल्ट आ गया, मेरा रैंक भी…
उत्तरदायित्व - लघुकथा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
माहिष्मती गाँव में ललिता देवी नामक एक सुसभ्य सुसंस्कृत महिला रहती थी। उनके पति गौरी शंकर एक पढ़े लिखे और निहायत भद्र स्वभाव के स्वाभिमा…
सदा सुखी रहो बेटा - लघुकथा - सुषमा दीक्षित शुक्ला
रिटायर्ड इनकम टैक्स ऑफिसर कृष्ण नारायण पांडे आज अपनी आलीशान कोठी में बहुत मायूसी महसूस कर रहे थे, क्योंकि उनकी दो हफ़्ते से बीमार पत्नी…
मेरे बेटे ने - कविता - धीरेन्द्र पांचाल
छोड़ दिया है दामन मेरा मेरे बेटे ने। दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने। जिसको राजा बेटा कहकर रोज़ बुलाते थे। जिसका सर सहलाकर पूरी रात स…
माँ बनकर - कविता - सुधीर श्रीवास्तव
कौन कहता है कि मैं लाचार हूँ, देखो न मेरा बेटा मेरा आधार है, मुझे गर्व है कि मैंनें ऐसा लाल जना है, ऐसे बेटे पर किस माँ को गर्व नहीं …
कभी हँसती, कभी रोती थी माँ - कविता - नीरज सिंह कर्दम
सड़क के उस पार खड़ी बुजुर्ग, बीमार महिला सामने वाले बंगला को बड़े ही ध्यान से निहार रही थी। सामने वाले बंगले से एक महंगी कार बाहर आती …
फौजी का निर्णय - कहानी - सतीश श्रीवास्तव
देश की सेना में सेवा करना सचमुच ही एक अद्भुत अनुभूति देता है, अपना तन-मन राष्ट्र के लिए होता है समर्पित और यह समर्पण का भाव देता है उन…
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