मेरे बेटे ने - कविता - धीरेन्द्र पांचाल

छोड़ दिया है दामन मेरा मेरे बेटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

जिसको राजा बेटा कहकर रोज़ बुलाते थे।
जिसका सर सहलाकर पूरी रात सुलाते थे।
क्यों इतना कड़वा बोल दिया है मेरे खोटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

गिरवी मेरे सपने मेरी इच्छाएँ लाचार थी।
उसकी दुनिया लगती मुझको मेरा ही आकार थी।
कैसे धक्के मारे मुझको मेरे छोटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

क्या करुणा का सागर उसका सुख गया होगा।
बूढ़े कन्धों से उसका मन ऊब गया होगा।
गले लगा ले माँ बोली ना समझा बेटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

डर लगता है यहाँ पराए होंगे कैसे कैसे।
घर ले चल तू मुझको मैं रह लूँगी जैसे तैसे।
एक बार ना पीछे मुड़कर देखा बेटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

सुखी अंतड़ियों की ख़ातिर अब दो रोटी भी भारी है।
जिसने उसको जन्म दिया है वो ही बना अनारी है।
छूना चाहा उसको झटका मेरे बेटे ने।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने।

धीरेन्द्र पांचाल - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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