माँ बनकर - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

कौन कहता है
कि मैं लाचार हूँ,
देखो न मेरा बेटा
मेरा आधार है,
मुझे गर्व है कि
मैंनें ऐसा लाल जना है,
ऐसे बेटे पर किस माँ को 
गर्व नहीं होगा?
ऐसे लाल के लिए
सौ जन्म भी कम होगा।
आखिर मेरे गर्व का
ये कारण कम है क्या?
कल जिसे मैंंने माँ बन के पाला
आज वो मुझे खुद
माँ बन कर पाल रहा है,
मुझे तार रहा है।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

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