संदेश
मैं स्त्री हूँ - कविता - प्राची अग्रवाल
जानती हूँ मैं अपनी मर्यादा हर वक्त मुझे मत टोको। मर्यादा लाँघने वाली स्त्रियाँ अलग होती है। मुझे उनके साथ मत तोलो। भाषा हूँ मैं मौन की…
स्त्रीत्व - कविता - आलोक गोयल
देवी बनने की चाह नहीं नारी ही मुझको रहने दो, बाँधों से मत रोको अब स्वच्छंद नदी-सी बहने दो। मैं पूजा की वस्तु नहीं इतना भी अभिमान ना द…
स्त्री - कविता - संजय राजभर 'समित'
स्त्री एक आनंद है सकल ब्रह्मांड है तो एक गंभीर, अथक पथिक भी है जो सत्य की खोज में एक अदम्य साहस के साथ अकेले सूनसान! ज़िंदगी की ऊबड़-ख…
मैं नारी हूँ - गीत - उमेश यादव
मैं नारी हूँ, मैं शक्ति हूँ , मैं देवी हूँ, अवतारी हूँ। अबला कभी समझ मत लेना, ज्वाला हूँ, चिंगारी हूँ॥ कल्याणी, भवानी, सीता भी मैं, …
नारी - कविता - सूर्य प्रकाश शर्मा
ईश्वर की अनुपम, अद्भुत कृति, हे सावित्री! सीता, हे सती! हो रानी लक्ष्मी बाई तुम, काली बनकर के आई तुम॥ परहित करने वाली देवी, वीरों…
देहाती स्त्रियाँ - कविता - विक्रांत कुमार
रात और दिन का क्षण पाय-पाय रेजकी का संग्रहण घर-गृहस्थी की गुमकी पसीने से तर-बतर हौसला गृहस्थ आमद और खाता-बही देहती स्त्रियाँ सबको…
औरत - कविता - डॉ॰ आलोक चांटिया
बड़ी अजीब सी बात है कि उसके जीवन में आज भी वैसी ही रात है कहते तो यह भी है कि वह जैसे चाहे जी सकती है जहाँ चाहे रह सकती है अब आसम…
गांधी जी और स्वतंत्र भारत की स्त्री - लेख - सुनीता भट्ट पैन्यूली
गांधी जी का जीवन-दर्शन आश्रय स्थल है उन जीवन मूल्यों और विचारों का जहाँ श्रम है, सादगी है सदाचार है, आत्मसम्मान है, सत्य है, अहिंसा है…
स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अलग - कविता - नौशीन परवीन
बहुत सी लेखिकाएँ स्त्रियों की जीवन गाथा लिख रही है हर स्त्रियों की अपनी कहानी होती है। मध्यम वर्ग की स्त्री पुरुषों की पकड़ से स्व…
कच्ची मिट्टी - कविता - कुमुद शर्मा 'काशवी'
कच्ची मिट्टी सी मैं, सबके रंग में रंग जाऊँ, ढाल ख़ुद को...! अपनो की ख़ुशियों में, मन ही मन सुकून पाऊँ, हर रिश्ते के साँचे में, ढाल ख़ुद …
नारी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
नारी है तो जग है, नारी है तो जीवन का सुंदरतम मग है। अबला नहीं हो तुम तुम तो हो सबला, बचपन में माँ-बाप का खिलौना और आँगन में जैसे तु…
तुझसे है यह जीवन सारा - कविता - जयप्रकाश 'जय बाबू'
तुझसे है यह जीवन सारा, लोक, धरा ये गगन अपारा, तुमसे है ख़ुशियाँ और प्यार तुमसे ही है ये घर परिवार, बच्चों के कोमल बचपन सी मुस्काती हर्ष…
नारी - दोहा छंद - भाऊराव महंत
रोक सको तो रोक लो, नारी की रफ़्तार। अब पहले जैसी नहीं, वह अबला लाचार॥ जब नारी चुपचाप थी, दिखता था संस्कार। बदतमीज़ लगने लगी, बोली जिस दि…
प्रश्न नहीं, परिभाषा बदलनी होगी - कविता - अपराजितापरम
चाहती हूँ, उकेरना, औरत के समग्र रूप को, इस असीमित आकाश में...! जिसके विशाल हृदय में जज़्बातों का अथाह सागर, जैसे- संपूर्ण सृष्टि की भाव…
औरतें जिन्हें इतिहास जगह देगा - कविता - डॉ॰ चित्रलेखा अंशु
औरतें पढ़ रही हैं स्टेटिस्टिक गढ़ रही हैं मैथ्स के फार्मूले छूट रहा है उनसे रसोई उनके भी दो ही हाथ हैं दोनों हाथ लिखने में व्यस्त होंग…
समता की अधिकारी 'नारी' - कविता - आशीष कुमार
लड़ रही लड़ाई अपनी गर्भ से ही अस्तित्व की पहचान की घर से लेकर बाहर तक हर एक मुद्दे पर ख़ुद को स्थापित की है अपनी मेहनत से लगन से मेधा स…
मान करो या अपमान करो - कविता - गणेश भारद्वाज
मैं नर की पूरक नारी हूँ नर से मेरी होड़ नहीं है, भाव सरल सब सीधे मेरे पथ में कोई मोड़ नहीं है। मैं मालिन बाग बगीचों की सबका मन बहलाने…
मैं औरत हूँ - कविता - दीक्षा
मैं कोमल हूँ, कमज़ोर नहीं मैं गर्व हूँ, मग़रूर नहीं मैं औरत हूँ कोई डोर नहीं बाँधके न रखो मुझे, तोड़ सब ज़ंजीरे जाऊँगी अँधेरे का सामना तो …
सुनो न - कविता - राशि गुप्ता
सुनो न... मेरे भी हैं कुछ ख़्वाब, बंद पिंजरे में मैं तकती आसमान को हूँ, पूरे करने को वे मेरे अरमान... सुनो न... सुनो न... मत बाँधों न…
माँ - कविता - शीतल शैलेन्द्र 'देवयानी'
नौ महीने प्यार से कोख में रखकर, जन्म देती है तुझे एक नारी। नारी से फिर माँ बनकर, ख़ुद अपने को धन्य समझती है नारी। न कभी बोझ तुझे समझा न…
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