ईश्वर की अनुपम, अद्भुत कृति,
हे सावित्री! सीता, हे सती!
हो रानी लक्ष्मी बाई तुम,
काली बनकर के आई तुम॥
परहित करने वाली देवी,
वीरों जैसी काली देवी।
दुष्टों के नाश हेतु आई,
तुम चिर सजीव, तुम स्थाई॥
प्रेम तुम्हारा जीवित है,
ना सीमित, अरे! असीमित है।
प्रेयसी हो तुम, संसार कहे,
अबला नारी प्रतिकार सहे॥
है प्रेम तुम्हारा मातृ रूप,
शक्ति तुम में, ज्यों कोटि भूप।
जब प्रेयसी हो, तुम शांत नदी,
यदि भूप बनी, हिल जाए सदी॥
नारी ही राष्ट्र विधाता है,
वो सब जन की सुखदाता है।
माता ही दिशा-दिशा, पुत्र को दे,
फिर पुत्र राष्ट्र निर्माण करे॥
नारी ने सभी सुधार दिए,
अति मूढ़ व्यक्ति भी तार दिए।
‘तुलसी’ इसके प्रत्यक्ष प्रमाण,
पत्नी ने उनको दिया ज्ञान॥
नारी का यौवन सुन्दरतम,
उससे भी सुन्दर उसका मन।
हैं दया, शील और क्षमादान,
ये हैं नारी में विद्यमान॥
सूर्य प्रकाश शर्मा - आगरा (उत्तर प्रदेश)