संदेश
शिक्षक और समाज - कविता - गणेश भारद्वाज
राष्ट्र को आशाएँ हैं मुझसे, खरा उन पर उतरना है मुझे। ढाँचा जो हो चुका है जर्जर, धीरे-धीरे कुतरना है मुझे। मुझे करना है निर्माण सभ्य सम…
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
१ जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी। साझे में खेती होती थी। कुछ लेन-देन में भी साझा था। एक को दूसरे पर अटल विश्वास था। जु…
समाज - कविता - डॉ॰ अर्चना मिश्रा
पानी सा तैरता जीवन धपाक छपाक फिर निशब्दता निशब्दता से उपजता कोलाहल कोलाहल में सन्नाटा सन्नाटों से उपजता शोर शोर से हो जाता भयावह म…
स्त्री-पुरुष दोनों की भूमिका अलग - कविता - नौशीन परवीन
बहुत सी लेखिकाएँ स्त्रियों की जीवन गाथा लिख रही है हर स्त्रियों की अपनी कहानी होती है। मध्यम वर्ग की स्त्री पुरुषों की पकड़ से स्व…
पितृसत्तात्मक समाज और स्त्री जीवन - कविता - नीलम गुप्ता
एक स्त्री की ज़िंदगी को, क्या बनाकर रख दिया है? इन पितृसत्तात्मक समाज के लोगों ने। पीहर में पली बढ़ी तो गुड़िया देकर उसे, उसके अस्तित्व…
आधुनिक समाज - दोहा छंद - बजरंगी लाल
मुँह पर मीठी बोलते, दिल में रखते द्वेष। ए आस्तीन के साँप हैं, इनसे रहें सचेत।। साथ रहें मिलते सदा, लेते मन का भेद। जिस पत्तल में खात ह…
मासिक धर्म और समाज का नज़रिया - कविता - राजेश "बनारसी बाबू"
ये ऊपरी अँधेरी कोठरी से कैसी कहरने की आवाज़ आई है? ये कैसी चिल्लाहट और रोने की चीख़ दे रही सुनाई है? लगता है आज अपनी छोटी बिटिया को मास…
सतत विकास में कहाँ हैं हमारा समाज - आलेख - परमजीत कुमार चौधरी
हमारा देश और समाज निरंतर विकास के पथ पर अग्रसर है और हमने काफी सारे उपलब्धियां भी हासिल की है। परंतु क्या हमारा समाज सतत विकास की ओर अ…
हिन्दी समाज - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
भाषाएं भारत की समृद्ध शिरोमणि है इनमें हिन्दी, सब संस्कृत की पौत्र पौत्रियां गुण गण सबकी मिलती-जुलती। पालि, प्राकृत, अपभ्रंश क…
औरतों का मजाक - आलेख - सलिल सरोज
साहिर लुधियानवी का फिल्म साधना के लिए लिखा यह गीत औरतों के ऊपर सदियों से हो रहे भद्दे मज़ाक और पुरुष प्रधान समाज की नग्न मानसिकता की…
समाज का आईना - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
औरत है तुम्हारे समाज का आईना, खुद को देखो और पहचानों। कैसे दिखते हो तुम असल में, अपनी असलियत भी जानों।। कुछ शब्दो की माला, ये क…
विशेष रचनाएँ
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