संदेश
सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य - कवित्त - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
सत्य की कठोरता को कौन झेल पाता नित्य, काव्य में रसत्व का आनन्द नहीं होता तो। रूखे सूखे ज्ञान को भी सरस बनाता कौन, कवि जो स्वतन्त्र स्व…
अंतिम सच - कविता - विक्रांत कुमार
अंतिम सच कुछ नहीं होता है ढूँढ़ते रहिए जीवन की संगीन परिकल्पनाओं में अपने सुख के दिन की व्याख्या ज़रूरत की तमाम चीज़ों पर निश्चिताओं का स…
सत्य - कविता - ईशांत त्रिपाठी
सत्य को संतृप्त करता सत्य का नमस्कार है। सत्य जिनसे पुष्ट है वह सत्य का उपकार है। सत्य का जो मार्ग दृश्य नित्य नानाकार है। सत्य से संक…
सत्य या भ्रमित? - कविता - अपराजितापरम
अपनी ही कुंठा में ग्रसित यह कैसा शोर-सा है? अज्ञानता के आवरण में इंसानियत को छलता सत्य होने का स्वांग रचाता अपनी ही कुंठा में ग्रसि…
चुप रहो - कविता - अमरेश सिंह भदौरिया
यदि सच कहना चाहते हो तो आईने की तरह कहो, वरना चुप रहो। परंपरा परिपाटी का सच, हल्दी वाली घाटी का सच, कुरुक्षेत्र की माटी का सच, या... स…
परम सत्य - कविता - सूर्य मणि दूबे 'सूर्य'
कल क्या होगा, शायद पता नहीं, क़िस्मत का क्या फेरा, शायद पता नहीं। आज को जी लो हँस कर, वही तुम्हारा है, कल उस पर छोड़ो जिसका ये जग सारा…
सत्यमेव जयते - कविता - विकाश बैनीवाल
सत्य सुन्दर है, सौम्य सुदर्शन है सत्य खुद्दार, सत्य की जीत है, सरसता, कोमलता सत्य वाणी में सौहार्द, सत्य के प्रेम की प्रीत है। सत्…
रुबरु - कविता - मास्टर भूताराम जाखल
ऐ इन्सान हो तू जरा सत्य से रुबरु, सत्य ही सत्य है जो बचाए आबरू। झूठ प्रपंच पाखंड से रह सदा दुर, ना कर तू अंधविश्वास को मजबूर। ऐ नर तू …
सत्य - चर्चरी छंद - संजय राजभर "समित"
प्रेम राग बनी रहे, हर हाल में सच बोलिए। बात से कब क्या घटे ? तकरार में रस घोलिए।। आसमाँ झुकता रहा, …
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