अपराजितापरम - हैदराबाद (तेलंगाना)
सत्य या भ्रमित? - कविता - अपराजितापरम
शनिवार, अप्रैल 23, 2022
अपनी ही कुंठा में ग्रसित
यह कैसा शोर-सा है?
अज्ञानता के आवरण में इंसानियत को छलता
सत्य होने का स्वांग रचाता
अपनी ही कुंठा में ग्रसित
यह कैसा शोर-सा है?
जो महसूस होता है, क्यूँ नज़र नहीं आता?
उलझा-सा ये द्वन्द्व या जिज्ञासा...
आडंबर और मूल्यों के मध्य
क्यूँ समाधान नज़र नहीं आता?
भ्रमित हैं या लोभ से विवश...?
अपनी ही कुंठा में ग्रसित
यह कैसा शोर-सा है?
सत्य तो सर्वत्र है
कभी, भीड़ बन चीख़ता-चिल्लाता
कहीं, बंद घरों की खिड़कियों के
अधखुले कपाटों से झाँकता
और कहीं, वक्त के हाथों कुचला जाता,
अपनी ही कुंठा में ग्रसित
यह कैसा शोर-सा है?
सत्य व्यथित है, मगर पराजित नहीं
भ्रमित मानसिकता से गर, निकल पाते...
तो सत्य का मर्म समझ पाते,
और, रोक सकते, बहस के इन मुद्दों में
शिथिल होती मानवीय संवेदनाओं को...!
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर