सत्य - कविता - ईशांत त्रिपाठी

सत्य को संतृप्त करता सत्य का नमस्कार है।
सत्य जिनसे पुष्ट है वह सत्य का उपकार है।
सत्य का जो मार्ग दृश्य नित्य नानाकार है।
सत्य से संकल्प सबमें संकल्प सत्याधार है।
सत्य से सौभाग्य बढ़ता सत्य ज्ञान प्रकाश है।
सत्य तप से विजय सत्य शुभत्व का प्रसाद है।
अडिग अटल नित्य नूतन सत्य और सदाचार हो,
गुरु शरणाग्रही को यह सत्य साक्षात्कार हो,
चकाचौंध के अंध को इस भ्रम को यह सत्य खड्ग मिटाएगा,
मेरे गुरु जी के वात्सल्य में यह सत्य भी सुख मुक्ति पाएगा।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

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