संदेश
बंदर-बाँट - सजल - संजय राजभर "समित"
नोंच-नोंच कर खा रहे हैं। एक ही गीत गा रहे हैं।। देश रहे आबाद कैसे? बाँध पोटली जा रहे हैं। सीवरों से ज़हर घोलकर, नदियों पर बिल ला रहे …
सख़्त शहर नहीं क़बीले हैं - सजल - अविनाश ब्यौहार
सख़्त शहर नहीं क़बीले हैं। हरकत से ढीले-ढीले हैं।। लगे हुए जो घर के सम्मुख, कनेर वे पीले-पीले हैं। बादाम-दशहरी या चौसा, यहाँ आम बहुत रसी…
आदत - सजल - संजय राजभर "समित"
गहरा रहने की आदत है। अश्क छुपाने की आदत है।। पड़ोसी भूखा रह न जाए। हाथ बढ़ाने की आदत है।। डंक मारेगा बिच्छू मगर। फ़र्ज़ निभाने की आ…
रहस्य को गूढ़ रहस्य तुम बनाए रखना - सजल - विकाश बैनीवाल
रहस्य को गूढ रहस्य तुम बनाए रखना, जितना छुप सके मुझसे छुपाए रखना। भनक ना लग जाए मुझे कही से भी, गुमराही का फ़र्ज़ तुम निभाए रखना। जब तक …
ज़रूरी तो नहीं - सजल - विकाश बैनीवाल
तुझसे सुबह शाम मिलूँ, ज़रूरी तो नहीं, तेरे नाम पे ग़ज़लें कहूँ, ज़रूरी तो नहीं। बेशक बेइंतहा है प्यार, तुझसे जानेमन, मैं इसका दिखावा करूँ,…
कलम - सजल - संजय राजभर "समित"
एक दीप है कलम।। अस्त्र शस्त्र है कलम।। काल का चित्रण कर। वर्तमान है कलम।। कागजों पर चलता। अक्षय कोष है कलम।। जीवन सार …
बेटी - सजल - संजय राजभर "समित"
संस्कृति की धार है बेटी ! आन-बान व सार है बेटी !! गुरु लघु और ब्रह्मांड सा रूप ! सृष्टि की आधार है बेटी !! कीचड़ उछाले गयें ह…
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