आन-बान व सार है बेटी !!
गुरु लघु और ब्रह्मांड सा रूप !
सृष्टि की आधार है बेटी !!
कीचड़ उछाले गयें हैं पर !
पतित पावन प्यार है बेटी !!
मारी जा रही हैं कोख में !
निराश्रित लाचार है बेटी !!
रिश्तों की वृक्षों पर उगती !
हर कदम गुलजार है बेटी !!
संजय राजभर "समित" - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)