तुझसे सुबह शाम मिलूँ, ज़रूरी तो नहीं,
तेरे नाम पे ग़ज़लें कहूँ, ज़रूरी तो नहीं।
बेशक बेइंतहा है प्यार, तुझसे जानेमन,
मैं इसका दिखावा करूँ, ज़रूरी तो नहीं।
जीना पड़ता है, परिवार-समाज देखकर,
बस प्यार ही सर पर धरूँ, ज़रूरी तो नहीं।
जग से छुपा हुआ, पवित्र रिश्ता है अपना,
इस बात का हल्ला करूँ, ज़रूरी तो नहीं।
एक बार कह दिया, अनूठा प्रेम है हमारा,
जानू-जानू कहता फिरूँ, ज़रूरी तो नहीं
हमारी बातें तो हो जाती है, चिट्ठियों में,
तेरी गली में आता रहूँ, ज़रूरी तो नहीं।
दिल से याद करता है तुझे ये "विकाश"
बस हिचकियों में ही रहूँ, ज़रूरी तो नहीं।
विकाश बैनीवाल - भादरा, हनुमानगढ़ (राजस्थान)