संदेश
होली खेले कान्हा - कविता - सुनीता मुखर्जी
राधा रानी संँग खेलन होली पहुंँच गए बरसाना, रंग लगाने की ताक में छिपे इत-उत देखें कान्हा। देख लियो माधव, राधिका लाज से सकुचानी, लोचन डू…
रंगरसिया राधा रमण - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
वंदन पूजन हरि चरण, अर्पण जगदानन्द। राधा नटवर प्रिय मिलन, ब्रज होली आसन्द।।१।। राधा माधव मोहिनी, करूँ रंग शृङ्गार। खेलूँ होली साथ में, …
राधा की रुसवाई - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
राधा जब जब तुमने गुस्सा जताया, खाते हैं कसम हमें कुछ न भाया। सारे जग में कोई न साथी, विलीन हो गया क्यों अपनापन, तुम्हारी रूसवाई से ल…
फागुन महीना - कविता - रमाकांत सोनी
बाँसुरी की धुन पर कान्हा, यमुना तट पर गाएगा। थिरकेगी ब्रज की हर बाला, गोकुल में मोहन आएगा। वासंती मादक महीना, फाग भरा फागुन आया। पि…
कान्हा राधा मुदित मन - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
गोरा तन अस्मित वदन, श्याम राधिका देख। वंशीधर माधव मुदित, लक्ष्मी चारु सुलेख।।१।। कान्हा राधा साथ में, बैठे यमुना तीर। कमलनैन राधा नयन,…
पड़ गए पीछे - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
राधा ने एक दिन कहा श्याम से क्यों पड़ गए मेरे पीछे, न कुछ सोचा न समझा क्यों प्यार की बेल को सींचे। बाबुल की ख़ातिर मैं घुट लेती उनकी आन …
धूल की होली - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
बृज धूल की रोली से, राधा कान्हा संग खेले होली रे। देख कान्हा राधा मनमोहनी को, अपनी सुध वुध खो जावे। वेसुध देख के कान्हा को, धूल की मु…
हठ करती प्रिय राधिका - दोहा छंद - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
लिये हाथ बांँसुरिया, कृष्ण चन्द्र मुस्कान। हठ करती प्रिय राधिका, श्रवण बांँसुरी तान।।१।। सुन राधे धीरज धरो, खाऊँ मैं नवनीत। चलें पुन: …
हिचकी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
सुनो सुनो ओ रुकमण रानी मुझे हिचकी आई, किसी ने मुझे याद किया कोई याद करें न करें जिसने किया नेह उसी ने मुझे याद किया। बीते पलो को लेकर …
श्याम की पाती - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
पढ़ के सुना दे ले सखी, मेरे श्याम की पाती, ऐसी रमी प्यार में कि श्याम श्याम के सिवा, और न कुछ कह सुन पाती। याद किया कितना, हमको बतला द…
द्वेष न रखना - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
रुकमण तुम द्वेष न रखना ओ रुकमण रानी, राधा के दिल मे, उलझें तेरे श्याम के प्रानी। जीवन रूपी पौधा श्याम का, विकसित होगा तब, जब बन जायो त…
प्रेमधुनी मधुमीत - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
बजे मुरलिया प्रेमधुन, चहुँदिशि भाव विभोर। दौड़ी आयीं गोपियाँ, राधा मन चितचोर।।१।। मनमोहन अभिनव मधुर, वंशीधर सुर राग। देख विमोहित राधि…
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