होली खेले कान्हा - कविता - सुनीता मुखर्जी

राधा रानी संँग खेलन होली पहुंँच गए बरसाना,
रंग लगाने की ताक में छिपे इत-उत देखें कान्हा।

देख लियो माधव, राधिका लाज से सकुचानी,
लोचन डूबी कृष्ण मिलन की आस हिय में जागी।

तानी पिचकारी रंगभरी बृषभानुजा रही हरषाए,
न छोडूंँगा आज तुम्हें कृष्णा मन ही मन मुस्काए।

करूंँ मिन्नतें बारंबार रंग न डालो मुझ पर गिरधर,
नख से शिख तक रंगी तुम्हारे रंग में ओ मेरे प्रियवर।

कृष्णमय भये सखा, सखी उत्साहित सारी नगरिया,
संँग लिये ग्वाल बाल, थामी पिचकारी छोड़ मुरलिया।

जो आज छोड़ा राधे तुमको, न जाने कब होगा आना,
प्रेम अलौकिक तरस रहे नैना होली है एक बहाना।

सुनीता मुखर्जी - गाजियाबाद (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos