हिचकी - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

सुनो सुनो ओ रुकमण रानी
मुझे हिचकी आई,
किसी ने मुझे याद किया
कोई याद करें न करें
जिसने किया नेह
उसी ने मुझे याद किया।
बीते पलो को
लेकर कहीं
मुस्कुराई होगी,
साजन मेरा
मैं सजनी
यह सोच के
शर्माई होगी।
जो दूर दूर
अनजान बने थे
और बने थे परदेशी,
रंग निखर आया 
यादों का 
क्योंकि अब
दोनों कि राहें एक जैसी।
श्याम की राधा
कुछ कह ना सके
मन ही मन
शायद जलता हो जिया,
सुनो सुनो ओ रुकमण रानी
हिचकी आयी
मुझे किसी ने याद किया।
कभी जज़्बातों को लेकर
झूठ मूठ की  
होती थी रुसवाई,
मानना मनाना
एक दूजे का
आते ख़्याल
फिर आई होगी हँसाई।
कभी रुकमण का
कभी बाबुल का
सोच के राधा
घबराई,
हो गयी में तो
श्याम की
चाहे जमाना
लाख बने हरजाई।
बना बहाने
छुप छुप कर मिलना
श्याम के दिल 
को आबाद किया,
सुनो-सुनो रुकमण
हिचकी आई,
मुझे किसी ने
याद किया।
कोई याद करें न करें
जिसने मुझे किया नेह
उसी ने मुझे याद किया।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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