राधा की रुसवाई - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

राधा जब जब तुमने
गुस्सा जताया,
खाते हैं  कसम
हमें कुछ न भाया।
सारे जग में 
कोई न साथी,
विलीन हो गया
क्यों अपनापन,
तुम्हारी रूसवाई से लगता है,
हमको सारे आलम में 
रुखापन।
खूब कसमें खिलाई मुझको
अब क्या ज़हर खिलाना है,
तेरी रूसवाई सहन न होगी
जीते जी मर जाना है।
हम तो अच्छे
भले थे मानुस 
तूने क्यों हमें रुलाया।
जब जब तुमने गुस्सा जताया,
खाते हैं कसम
हमें कुछ न भाया।
रातों की टूटी निंदिया,
सपने हो गये झूठे झूठे। 
पागल सा
फिरता हूँ मैं 
हर गलियों में 
दिनचर्या सब छूटे,
लगता है तन टूटा,
शायद मन टूटा
पर तेरी आस जला रही है,
आशा बनी निराशा
अब क्यों तेरी
याद सता रही है।
नख़रों के तीर
चलाए हम पर,
जब-जब हमने
तुम्हें मनाया
जब-जब तुमने
गुस्सा जताया,
खाते हैं कसम
हमें कुछ ना भाया।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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