रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)
धूल की होली - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी
शुक्रवार, फ़रवरी 26, 2021
बृज धूल की
रोली से,
राधा
कान्हा संग खेले
होली रे।
देख कान्हा
राधा मनमोहनी को,
अपनी सुध वुध
खो जावे।
वेसुध देख के
कान्हा को,
धूल की
मुटठी खोली रे।
राधा खेले
कान्हा
संग होली रे।
राधा की अमृता सखी,
जब आगे
दूर निकल जावे।
देख अकेली
राधा को
कान्हा सारी बात बतावे।
ऐसी जैसे,
बिन रंग के
होली रे।
राधा खेले कान्हा
संग होली रे।
बाँध दुपट्टा
राधा अपने
मुख से,
कान्हा के
हाथ न
आवे और
आगे आगे
भागत जावे।
राधा का
दुःख
न देखें,
कान्हा
अपनी ही
हार जतावे।
अनजाने में
राधा के मुख
धूल का,
गुलाल लगा
कान्हा ने,
मन की
गाँठ जो
खोली रे।
राधा खेले
कान्हा
संग होली रे।
साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos
साहित्य रचना कोष में पढ़िएँ
विशेष रचनाएँ
सुप्रसिद्ध कवियों की देशभक्ति कविताएँ
अटल बिहारी वाजपेयी की देशभक्ति कविताएँ
फ़िराक़ गोरखपुरी के 30 मशहूर शेर
दुष्यंत कुमार की 10 चुनिंदा ग़ज़लें
कैफ़ी आज़मी के 10 बेहतरीन शेर
कबीर दास के 15 लोकप्रिय दोहे
भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है? - भारतेंदु हरिश्चंद्र
पंच परमेश्वर - कहानी - प्रेमचंद
मिर्ज़ा ग़ालिब के 30 मशहूर शेर