पड़ गए पीछे - कविता - रमेश चंद्र वाजपेयी

राधा ने एक दिन
कहा श्याम से
क्यों पड़ गए मेरे पीछे,
न कुछ सोचा न समझा
क्यों प्यार की बेल को सींचे।
बाबुल की ख़ातिर मैं घुट लेती
उनकी आन न जाने पाए,
इधर श्याम का देख तड़पना
मन ही मन जी घबराए।
कान्हा मैं कैसे समझाऊँ 
प्यार मुझे तुमसे है इतना,
मेरे प्यार की थाह न ले पाओगे
सागर में नीर है जितना।
प्रीति डोर में
बंध गई
फिर भी राहें
जुदा हो जाएगी,
एक राह
साजन की
एक राह
बाबुल की
ये कैसे मिल पाएगी।
दुनिया वालो हल समझा दो
कि इधर साजन का प्यार न छूटे 
उधर तात का दुलार न खीचे।
देख के राधा की मज़बूरी
श्याम दुखित हो यों बोले,
तुम बिन एक पल
एक जुग सम बीते या जगत में 
मन पागल पन सा डोले।
रुकमण समझावे कृष्ण बुझावे
पा नारी,
राधा कि आस लगावे,
प्रीति कि रीति न जाने कोई
जलने लगे वे लोग जो अपने को
ख़ास बतावे।
रोम रोम में 
बसी  है राधा
मन अंतर में 
नाम है उनका,
सच कहता
गर साथ न दोगी राधा
तो दमन करूँगा अपने तनका।
देकर प्यार बढ़ाया हमको
अब यू कह कर क्यों बाण
चलाए तीखे,
कि राधा ने
एक दिन
कहा श्याम से
क्यों 
पड़ गए मेरे पीछे।

रमेश चंद्र वाजपेयी - करैरा, शिवपुरी (मध्य प्रदेश)

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