संदेश
बगुले पंख तुम्हारे - गीत - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
कितनी राजनीति खेलेंगे बगुले पंख तुम्हारे? जिजीविषा त्यागी मौनी व्रत एक पैर तन साधे। कोई मीन दिखाई देती खाते कह कर राधे। आज झील कल सरित…
अंतःकरण का संवाद - लेख - रामासुंदरम
लोक सभा का मानसून सत्र चल रहा था। आरोपों एवं प्रत्यारोपों की झड़ी लगी थी। जिस भी मान्यवर को देखो वह हाव भाव दिखता, बोलता या फिर बुदबुदा…
हे मतदाता - कविता - अंकुर सिंह
हे मतदाता!, हे राष्ट्रनिर्माता! दारू मुर्गे पर ना बिक जाना। प्रत्याशी को समझ परख कर, मतदान ज़रूर तुम कर आना।। लोकतंत्र के तुम हो आधार, …
राजनीतिक पेच - कविता - सन्तोष ताकर "खाखी"
मासूमों के खून से रंगे, बेनकाब चेहरे से दाग बड़े गहरे होते हैं। राजपुरूष चुनावो के बाद अक्सर बेईनामी की खुली किताब होते हैं। सता व कुर…
चक्कर में - कविता - विनय विश्वा
क्यों पड़े हो चक्कर में सब अपने है चक्कर में कोई नहीं है टक्कर में सब बदते है खद्दर में। कोई कहता इसको डालो कोई कहता उसको सब सत्ता का …
सियासत - ग़ज़ल - वरुण "विमला"
सियासत की वफादारी पे शक करना बुरी बात थोड़े है आज के लोगो की यारी पे शक करना बुरी बात थोड़े है साहिब-ए-मसनद की बातें ही पत्थर की लकीर, …
बयानबाजी का दौर - हास्य व्यंग्य (आलेख) - कवि कुमार प्रिंस रस्तोगी
बयान बाजियों का दौर भी अपना एक लॉलीपॉप लेकर आता है, जिसमें घोर तपस्वी अपनी-अपनी गुफाओं से निकलकर आ जाते हैं अपने चमत्कृत कर्म से भावों…