चक्कर में - कविता - विनय विश्वा

क्यों पड़े हो चक्कर में
सब अपने है चक्कर में
कोई नहीं है टक्कर में
सब बदते है खद्दर में।

कोई कहता इसको डालो
कोई कहता उसको
सब सत्ता का खेल है भैया
जनता तुम जरा खिसको।

आओ भैया आओ बहना
आओ दद्दा तुम भी
तुम अपने कर्त्तव्य जानो
अधिकार जानो तुम भी।

भारत के हो भाग्य विधाता
जनता तुम ही त्राता
न‌ई सोच हो सही दिशा हो
जन-जन की हो गाथा
भारत भाग्य विधाता!

विनय विश्वा - कैमूर, भभुआ (बिहार)

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