कितनी राजनीति खेलेंगे
बगुले पंख तुम्हारे?
जिजीविषा त्यागी मौनी व्रत
एक पैर तन साधे।
कोई मीन दिखाई देती
खाते कह कर राधे।
आज झील कल सरिता बैठे
पोखर नार पनारे।
उड़ने का गुण तुममें भी है
धरा छोंड़ उड़ जाते।
बने रहे विष कुंभ पयोमुख
लोग नहीं पढ़ पाते।
बगुल भक्ति को सदा पूजते
सत्ता के गलियारे।
बड़े बने तो बनते जाते
छोटे पिसते जाते।
बढ़ता है परिवार तुम्हारा
बढ़ते धन के खाते।
कुर्सी बनी रहे कुछ ऐसे
सदा डालते चारे।
भारत माता ही जीवन है
कहते तन-मन धारे।
नहीं चलेगी नीति तुम्हारी
जागे सब रखवारे।
वही मनुज जो जिए राष्ट्र हित
क्षीर-नीर गुण धारे।
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फतेहपुर (उत्तर प्रदेश)