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यूँ तो, सब दिखता है - कविता - अपराजितापरम
यूँ तो, सब दिखता है, मगर, कुछ नज़र नहीं आता। इन चर्चाओं के बाज़ार में, बनावटी चकाचौंध की जिरहों में हर शख़्स सम्मोहित हुआ जाता है। यूँ तो…
नज़रिया - कविता - बृज उमराव
सोच और व्यक्तिगत नज़रिया, नज़र नज़र की बारी है। कोई कहता भरा हुआ है, कोई कहता खाली है।। दृष्टिकोण है अपना अपना, नपी नज़र का पैमाना। इसी नज़…
एक नज़र तू देखे अगर - कविता - राजकुमार बृजवासी
एक नज़र तू देखे अगर, बेक़रार दिल को करार आ जाए। मन में खिल उठे प्यार के सुमन, सुनी पड़ी बगिया में बहार आ जाए। एक नज़र तू... किस बात का गि…
है नज़र - ग़ज़ल - मनजीत भोला
इस ज़मीं उस आसमाँ की है नज़र, आप पर सारे जहाँ की है नज़र। तितलियाँ करने लगी हैं खुदकुशी, फिर भी ऊँची बाग़बाँ की है नज़र। छाछ तक जिससे कभी म…
नज़र - ग़ज़ल - महेश "अनजाना"
ख़ामोशी का राज़ खोलती है नज़र। सच को तलाशती खोजती है नज़र। दिल ये बेज़ार होता रहा जब जब, दर्द का अहसास, तोलती है नज़र। राज़ फाश की लाख क…
तू सज-धज के नज़र आती हैं - नज़्म - कर्मवीर सिरोवा
शफ़क़ की पैरहन ओढ़ें शाम जब मिरे मस्कन आती हैं, सुर्ख़ मनाज़िर में तू दुल्हन बनी सज-धज के नज़र आती हैं।। तन्हा रात हैं, शोख़ जज़्बातों के क़ाफ़ि…
नज़रें बदलो - कविता - कपिलदेव आर्य
नज़रें बदलो नज़ारे बदल जायेंगे, डटे रहे, तो सितारे बदल जायेंगे! देर से ही सही, मेहनत रंग लाती है, चल पड़ोगे तो किनारे मिल जायें…