इस ज़मीं उस आसमाँ की है नज़र,
आप पर सारे जहाँ की है नज़र।
तितलियाँ करने लगी हैं खुदकुशी,
फिर भी ऊँची बाग़बाँ की है नज़र।
छाछ तक जिससे कभी माँगा नहीं,
इस मकाँ पे उस मकाँ की है नज़र।
किस तरह गुज़रे कोई बाज़ार से,
हर कदम पे हर दुकाँ की है नज़र।
याद भी आता नहीं वो आजकल,
इस क़दर उस मेहरबाँ की है नज़र।
गीत, ग़ज़लें और हम हैं जो यहाँ,
सब हमारे हम-ज़बाँ की है नज़र।
मनजीत भोला - कुरुक्षेत्र (हरियाणा)